दौर-ए-गर्दिश है मगर उसूल संभाल रखे हैं..
दौर-ए-गर्दिश है मगर उसूल संभाल रखे हैं।
तूफां के साये में सच के दीप बाल रखे है॥
मुश्किल है बहुत सच का ये सफ़र माना।
हमनें मग़र मंजिल के ख़्वाब पाल रखे है॥
बढा रहे हैं तल्खियां जो हमारे रिश्तों में।
अमन के दुश्मन ने वो मुद्दे उछाल रखें है॥
शक वाज़िब है इन नापाक हरकतों पर।
जानें किस मंशा से नाहक सवाल रखे हैं॥
कई और ज़रुरी मसाईल बाकी हैं अभी।
गरीबी के भूख के कलंकित काल रखे है॥
पहले ही कुछ कम परेशान नही ज़िन्दगी।
उस पर मज़हबी जज़बात उबाल रखे हैं॥
पशोपेश में है ग़रीब जिये तो जिये कैसे।
हर कदम नफ़रतों ने जाल डाल रखे है॥
सतीश बंसल