साथ
साथ किसी का दे न सको तो, भ्रम भी उसको मत देना ।
साथ निभाने का वादा कर, बीच राह मत कर देना ।
चला मुसाफिर बनकर था जो, मंजिल तक पहुंचा देना ।
जो इतना भी कर न सको तो, खुद को व्यर्थ समझ लेना ।
साथी तुम्हें समझकर अपना, जो जीवन कोभूल गया ।
तुमको साथी नया मिला तो, वो तुमको फिर शूल हुआ ।
कैसा प्रेम निभाया तुमने, कैसा उसका साथ दिया।
तुम भूल गए वादे सब अपने, प्रेम का हर पल भुला दिया ।
जिसने तुमको सबकुछ माना, अपना जीवन वार दिया ।
हो न अकेले तुम जीवन में, इसलिए खुद को मार दिया ।
जो खुद से लडकर भी खुद को, न्याय कभी नही दे पाया ।
पडकर समाज के फेरे में स्वय को नाकाबिल पाया ।
— अनुपमा दीक्षित “मयंक”