कविता : रोशनी
जब सूरज अपने उजास को
समेट रहा होगा
और चाँद ने फैलानी
शुरू कर दी होगी चाँदनी
दोनों के मिलन से उभर
आता है सिंदूरी रंग
तुम वहां से एक चुटकी
सिंदूर लेकर मेरी
मांग में लगा देना
खिलती चाँदनी के
एक सितारे को मेरे
माथे पर सजा देना
फिर दुआओं का चुम्बन हो
मेरी दोनों पलकों पर
और मैं खुद को डूबो दूँ
चाँद की चाँदनी में
की मैं अब एक
रोशनी गढ़ना चाहती हूँ
तुम्हारे नाम की
हमारे प्रेम के नाम पर
लाजवाब
bahut-bahut dhanywad
बहुत खूब .
bahut-bahut dhanywad .
सुंदर रचना
hardik aabhar
सुन्दर कविता .
hardik aabhar.
स्वागत है आप का आदरनीय रीना मौर्य जी
बढ़िया कविता!!
bahut- bahut dhanywad