रो उठी कैकशा
मापनी : 212 , 212 , 212 ,212 ”
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प्रेम पथ के पथिक – रोज आते रहे /
दर्द मन को दिए तन लुभाते रहे /१
आश् बादल दिखे धूप सहती मही/
प्यार मे लुट गयी -साब आते रहे /२
देख मेरी दशा – रो उठी कैकशा
शब्द बुन जाल वे – नित बताते रहे /३
नाम कैसे कहूँ राज दिल मे लिए/
हो नहीं अब दफ़न – मन रुलाते रहे / ४
सींच जो वे गये पौध सजने लगे /
मीत माली जुदा गम सताते रहे /५
भूल होती रही – मन नदानी सुनो /
प्रीति के पर जले वे भुलाते रहे6
राजकिशोर मिश्र ‘राज’
१५/०५/२०१६
बहुत सुन्दर .
आदरणीय जी हौसला अफजाई के लिए आभार संग नमन्