गीतिका/ग़ज़ल

रो उठी कैकशा

मापनी : 212 , 212 , 212 ,212 ”
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प्रेम पथ के पथिक – रोज आते रहे /
दर्द मन को दिए तन लुभाते रहे /१
आश् बादल दिखे धूप सहती मही/
प्यार मे लुट गयी -साब आते रहे /२
देख मेरी दशा – रो उठी कैकशा
शब्द बुन जाल वे – नित बताते रहे /३
नाम कैसे कहूँ राज दिल मे लिए/
हो नहीं अब दफ़न – मन रुलाते रहे / ४
सींच जो वे गये पौध सजने लगे /
मीत माली जुदा गम सताते रहे /५
भूल होती रही – मन नदानी सुनो /
प्रीति के पर जले वे भुलाते रहे6

राजकिशोर मिश्र ‘राज’
१५/०५/२०१६

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

2 thoughts on “रो उठी कैकशा

  • बहुत सुन्दर .

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय जी हौसला अफजाई के लिए आभार संग नमन्

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