गीतिका/ग़ज़ल

मुंसिफ ने बिन खता ही ख़तावार लिख दिया

मुंसिफ ने बिन खता ही ख़तावार लिख दिया।
बिना गुनाह मुझको गुनहग़ार लिख दिया॥

हर राह अपनों ने छला मुझको कदम कदम।
फिर मुझे ही झूठ का किरदार लिख दिया ॥

रोशन किये उसूलों के चिराग उम्र भर।
पर उजालों ने हमें अंधकार लिख दिया॥

बच कर चला बदी की राह से तमाम उम्र।
फिर भी अपनों ने हमें बदकार लिख दिया॥

करते रहे हम तो वफ़ा अपनों से गैरों से।
हर सख़्श ने फिर भी हमें गद्दार लिख दिया॥

हमराह भी था हर कदम हमदम भी था मगर।
उसने भी अब निबाह नागवार लिख दिया॥

इल्ज़ाम भला किसको दूं हालात का बंसल।
बस वक्त ने किस्मत को ज़ार ज़ार लिख दिया॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

4 thoughts on “मुंसिफ ने बिन खता ही ख़तावार लिख दिया

  • लीला तिवानी

    प्रिय सतीश भाई जी, अति उत्तम गज़ल के लिए आभार.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल !
    गुनहगारों में शामिल हूँ गुनाहों से नहीं वाक़िफ़।
    सज़ा पाने को हाज़िर हूँ खुदा जाने ख़ता क्या है!

    • सतीश बंसल

      शुक्रिया आद.. विजय जी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल !
    गुनहगारों में शामिल हूँ गुनाहों से नहीं वाक़िफ़।
    सज़ा पाने को हाज़िर हूँ खुदा जाने ख़ता क्या है!

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