मुक्तक/दोहा

दोहे

प्रकृति के सुकुमार कवि, सुमित्रा नंदन पंत जी को समर्पित मेरी आज की दोहावली…

सब कुछ धारण कर रही, धरती धरती धीर।
मानव तु भी तो समझ, इसके मन की पीर॥

कटते जंगल कर रहे, मन ही मन संताप।
व्याकुल धरती हो रही, रोज बढ रहा ताप॥

प्रकृति पर हो रहे, नित्य नये प्रहार।
खेतो में उगने लगे, माॅल और बाजार॥

तेरी इस करतूत का, भारी होगा मोल।
लालच का पर्दा हटा, मानव आंखे खोल॥

सूख रहे दरिया सभी, सूख रहे तालाब।
नदियों में पानी नही, धरती खोती आब॥

मनमानी करते रहे, यूं ही यदि दिन रात।
एक रोज बतलायेगी, यह तुमको औकात॥

चीर हरण मत कीजिये, करती रोज पुकार।
क्रोधित यदि ये हो गयी, होगा सब संघार॥

अब भी यदि रोका नही, तुमने अत्याचार।
सब पाने की होड में, सब जाओगे हार॥

बंसल विनती कर रहा,धरो धरा का ध्यान।
वन जंगल को जानिये, जीवन का वरदान॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “दोहे

  • विजय कुमार सिंघल

    बढिया !

  • विजय कुमार सिंघल

    बढिया !

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