नारों से न पेट भरेगा…
नारों से न पेट भरेगा, रोटी और रोजगार चाहिये
भाव भावना से न हमको, अब कोई खिलवार चाहिये।
हरे केसरी में मत बाँटो मेरे हिन्दुस्तान को तुम
हमको भारत का गुलशन सब रंगो से गुलजार चाहिये॥
मंदिर में हो भजन कीर्तन, गुरुवाणी गुरुद्वारो में
मस्जिद में गूंजे अजान, हर हर गोविंद गलियारो में
ईद दीवाली की खुशियां हो, बैसाखी के मेले हों
रहे हमेशा चहल पहल, खुशियां झूमे घर द्वारों में॥
संविधान की सपथ उठाकर, संविधान से मत खेलो
नेताओं तुम भारत मां की, आन बान से मत खेलो।
मंदिर से भी पावन है, जिस संसद मैं बैठे हो तुम
कुछ तो हया लिहाज करो, मंदिर की शान से मत खेलो॥
पहन मुखौटे घूम रहे हो, कब तक इन्हे बचाओगे
उतरेगे जब ये मुख से, कैसे चेहरा दिखलाओगे।
धर्म और मज़हब के नाम पर, आग लगाना बंद करो
वरना वो दिन दूर नही, जब खुद भी तुम जल जाओगे॥
ये मत भूलो आखिर तो, उसके दर जाना ही होगा
हर प्रपंच छल और झूठ का, मोल चुकाना ही होगा।
दौलत ताकत रिश्वत तुमको, वहां बचा न पायेगी
उसके दर तो आखिर, कर्मों का फल पाना ही होगा॥
तोड रहे हो मर्यादा, कुछ ज्यादा बौराये हो शायद
दंभ के पर्दे के कारण, सच देख नही पाये हो शायद।
झूल रहे हो ताकत के झूले में, अभी नशे में हो
दानवता की परछाईं से, बाहर नही आये हो शायद॥
करता हूं अनुरोध, वोट के लिये न मां से घात करो
बढा रही जो खाई दिल में, मत ऐसी कोई बात करो।
सदियों के भाईचारे को, दफ़न करो मत नफ़रत में
भारत मां के बेटे होकर, मत मां पर आघात करो॥
सतीश बंसल, रोटी और रोजगार चाहिये
भाव भावना से न हमको, अब कोई खिलवार चाहिये।
हरे केसरी में मत बाँटो मेरे हिन्दुस्तान को तुम
हमको भारत का गुलशन सब रंगो से गुलजार चाहिये॥
मंदिर में हो भजन कीर्तन, गुरुवाणी गुरुद्वारो में
मस्जिद में गूंजे अजान, हर हर गोविंद गलियारो में
ईद दीवाली की खुशियां हो, बैसाखी के मेले हों
रहे हमेशा चहल पहल, खुशियां झूमे घर द्वारों में॥
संविधान की सपथ उठाकर, संविधान से मत खेलो
नेताओं तुम भारत मां की, आन बान से मत खेलो।
मंदिर से भी पावन है, जिस संसद मैं बैठे हो तुम
कुछ तो हया लिहाज करो, मंदिर की शान से मत खेलो॥
पहन मुखौटे घूम रहे हो, कब तक इन्हे बचाओगे
उतरेगे जब ये मुख से, कैसे चेहरा दिखलाओगे।
धर्म और मज़हब के नाम पर, आग लगाना बंद करो
वरना वो दिन दूर नही, जब खुद भी तुम जल जाओगे॥
ये मत भूलो आखिर तो, उसके दर जाना ही होगा
हर प्रपंच छल और झूठ का, मोल चुकाना ही होगा।
दौलत ताकत रिश्वत तुमको, वहां बचा न पायेगी
उसके दर तो आखिर, कर्मों का फल पाना ही होगा॥
तोड रहे हो मर्यादा, कुछ ज्यादा बौराये हो शायद
दंभ के पर्दे के कारण, सच देख नही पाये हो शायद।
झूल रहे हो ताकत के झूले में, अभी नशे में हो
दानवता की परछाईं से, बाहर नही आये हो शायद॥
करता हूं अनुरोध, वोट के लिये न मां से घात करो
बढा रही जो खाई दिल में, मत ऐसी कोई बात करो।
सदियों के भाईचारे को, दफ़न करो मत नफ़रत में
भारत मां के बेटे होकर, मत मां पर आघात करो॥
सतीश बंसल
अच्छा गीत !
अच्छा गीत !