रस्मो रिवाज कौन निभाता है आजकल
रस्मो रिवाज कौन निभाता है आजकल।
ये बोझ भला कौन उठाता है आजकल॥
खुदगर्जियों का दौर है खुद में ही खुश रहो।
रूठों को भला कौन मनाता है आजकल॥
सूरत पे हर किसी की है फ़रेब का नकाब।
सीरत को कौन सामने लाता है आजकल॥
रिश्ते हुए है सिर्फ और सिर्फ मतलबी।
बिन बात कौन रिश्ते निभाता है आजकल॥
कहने को तो इंसानों की बस्ती है दोस्तों।
इंसां मगर कहां नज़र आता है आजकल॥
बदले हुए इस दौर में सब कुछ बदल गया।
परियों के किस्से कौन सुनाता है आजकल॥
लगता है उसके सीने में तूफ़ान बहुत हैं।
मुस्कान में वो दर्द छुपाता है आजकल।॥
सतीश बंसल