गज़ल- मैं कहता हूँ
मैं कहता हूँ सपने अपने सजाया करो
मगर रेत पर यूँ महल मत बनाया करो !!
दिखावा कभी भी सच हो नहीं सकता
जो है असलियत वो बात बताया करो !!
हर चेहरा अपने आप में एक किताब हैं
तुम भी पढ़ो और मुझे भी पढ़ाया करो !!
हिचकिया भी बताती है मैं याद हूँ तुम्हें
कभी सरेआम मिलके भी जताया करो !!
हैं मतलब के सारे रिश्ते इस जहान में
तुम मतलब से यूँ रिश्ते न बनाया करो !!
साहित्य सेवक-
बेख़बर देहलवी