गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल- मैं कहता हूँ

मैं कहता हूँ सपने अपने सजाया करो
मगर रेत पर यूँ महल मत बनाया करो !!

दिखावा कभी भी सच हो नहीं सकता
जो है असलियत वो बात बताया करो !!

हर चेहरा अपने आप में एक किताब हैं
तुम भी पढ़ो और मुझे भी पढ़ाया करो !!

हिचकिया भी बताती है मैं याद हूँ तुम्हें
कभी सरेआम मिलके भी जताया करो !!

हैं मतलब के सारे रिश्ते इस जहान में
तुम मतलब से यूँ रिश्ते न बनाया करो !!

साहित्य सेवक-
बेख़बर देहलवी

बेख़बर देहलवी

नाम-विनोद कुमार गुप्ता साहित्यिक नाम- बेख़बर देहलवी लेखन-गीत,गजल,कविता और सामाजिक लेख विधा-श्रंगार, वियोग, ओज उपलब्धि-गगन स्वर हिन्दी सम्मान 2014 हीयूमिनिटी अचीवर्स अवार्ड 2016 पूरे भारत मे लगभग 500 कविताओं और लेख का प्रकाशन