कविता : रुक्मिणी के मन की व्यथा
रुक्मिणी के मन की व्यथा
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करते हो अपने मन की सदा
कभी मेरे मन की भी कर लो ना
भूल के राधा को इक पल
झोली प्यार से मेरी भर दो ना !!
प्रीत निभाई सदा राधा से
चाहे नाम मुझे है तेरा मिला
राधा संग बाँटे सुख-दुख अपने
अब करूँ क्या तुमसे मैं गिला !!
कण – कण में बसे राधा तेरे
हृदय में मुझे भी भर लो ना
भूल के राधा को इक पल
झोली प्यार से मेरी भर दो ना !!
अंजु गुप्ता