संस्मरण

मेरी कहानी 133

रीटा की शादी हो जाने के बाद, घर खाली खाली लग रहा था। संदीप स्कूल चले जाता, मैं और कुलवंत भी काम पर चले जाते और पीछे रह जाता निर्मल। निर्मल भी खा पी कर लाएब्रेरी में चले जाता। कुछ साल पहले निर्मल की पत्नी परमजीत के भाई तरसेम सिंह जिस को पप्पू बोलते थे, इंग्लैण्ड आ गया था। इंगलैंड के कॉवेंट्री शहर में परमजीत की बहन रहती थी, पप्पू उस के पास आया था। परमजीत की बहन ने पप्पू के लिए कोई लड़की देख रखी थी ताकि पपू इंगलैंड में सैटल हो सके। पप्पू का रिश्ता लीड में हो गया था और पप्पू की शादी में हम को भी इन्वाइट किया गया था। जिस दिन बरात लीड को जानी थी, मैं और कुलवंत सुबह ही कॉवेंट्री पहुँच गए थे। सभी बारातियों को एक कोच में जाना था। तीन घंटे में बरात लीड पहुँच गई थी। लीड के चैपल टाऊन गुर्दुआरे में आनंद कारज हुआ था और कुलवंत ने पप्पू के साथ बैठ कर एक भाई का पार्ट अदा किया था। शादी के बाद वापस कॉवेंट्री आ गए थे और हम भी वापस अपने टाऊन आ गए थे। पप्पू की शादी हो जाने के बाद एक दो दफा ही पप्पू को मिलने के लिए कॉवेंट्री हम जा सके थे क्योंकि इस के कुछ समय बाद ही पप्पू अपनी पत्नी के शहर लीड में ही रहने लगा था और वहीँ उस को काम मिल गया था, इस लिए उस को मिलने हम जा नहीं सके थे। पप्पू और उस की पत्नी ने लीड के बीस्टन इलाके में अपना घर ले लिया था। अब निर्मल को पप्पू से मिलवाने जाना था। एक दिन मैं कुलवंत और निर्मल सुबह सुबह लीड की तरफ निकल पड़े। निर्मल इंडिया से कुछ कपडे पप्पू और उस की पत्नी के लिए ले के आया था। तकरीबन साठ सत्र मील मोटरवे M6 पर हम जा चुक्के थे, अचानक निर्मल बोल उठा, “भा जी कपडे तो हम घर ही भूल आये। बातें करते और हँसते हम जा रहे थे कि एक दम उदास हो गए कि तोहफे तो घर ही भूल आये। एक कैफे पर गाड़ी हम ने खड़ी की, पहले चाय बगैरा पी और पीछे की तरफ गाड़ी मोड़ ली। अपने घर पहुँच कर कपडे बगैरा लिए और वापस लीड की तरफ चल पड़े। जब हम लीड पहुंचे तो एक दो बज चुक्के थे। पप्पू को मिल कर मन खुश हो गया। पप्पू बहुत खुश तबीयत है। बातें करते करते पप्पू अपने सुसराल के घर को चले गया और हमारे लिए खाना ले आया। पप्पू और उस की पत्नी ने अभी घर लिया ही था, इस लिए खाने वहीँ से बन कर आये थे । कुछ देर बैठ कर हम वापस अपने शहर को चल पड़े।

एक दिन हम ने बलैकपूल जाने का प्रोग्राम बना लिया। ब्लैकपूल एक सी साइड शहर है। हम भारतीओं के लिए ब्लैकपूल एक फेवरिट सीसाइड स्पॉट है। यूं तो इंगलैंड में बहुत से सीसाइड हॉलिडे बीचज हैं लेकिन हमारे मिडलैंड के निवासिओं के लिए ब्लैकपूल बहुत लोग प्रिय है। ब्लैकपूल में ही पैरस के आइफल टावर जैसा टावर है, आइफल टावर जितना ऊंचा तो नहीं है लेकिन फिर भी काफी ऊंचा है और सीढ़ियों के ज़रिये ऊपर चढ़ना होता है। इस पर चढ़ने के लिए लोग बहुत उत्सक होते हैं। वैसे भी इस बीच पर देखने के लिए बहुत कुछ है। सर्दियां शुरू होते ही सारे बीच पर रंग बिरंगी लाइटों से बीच जग मगा उठता है। इस को ब्लैकपूल लाइट्स भी कहा जाता है .बीच के किनारे किनारे एक ट्राम भी चलती है, जिस में बैठ कर लोग सारे बीच का नज़ारा देख लेते हैं। मैं कुलवंत और निर्मल तीनों मोटर वे M 6 पर चल पड़े। इस सफर का हम ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा लेना चाहते थे, इस लिए मोटर वे पर बने दो कैफे पर हम ठहरे और चाय काफी का मज़ा लिया। कई कैफे तो छोटे हैं लेकिन कई तो बहुत बड़े हैं जिस में दो दो तीन तीन सौ कारें पार्क हो सकती हैं और इस के इलावा बहुत से ट्रक्क भी पार्क करने की सुभिदा होती है। रैस्टोरैंट, दुकाने, पैट्रोल पम्प और गैंबलिंग मशीनें भी होती हैं। ऐसे कैफे हर पचीस तीस मील के फासले पर मोटर वे पर बने होते हैं। क्योंकि सफर लम्बा होता है, इस लिए कुछ देर आराम करने के लिए यह कैफे एक पिकनिक स्पौट का काम करते हैं। इस जगह आ कर मन खुश हो जाता है। घंटा आधा घंटा सभी खा पी कर आगे का सफर शुरू कर देते हैं।

जब हम ब्लैकपूल पहुंचे तो सूर्य अपने पूरे यौवन पर था और तापमान पचीस तीस डिग्री सैल्सियस होगा और ऐसा दिन मुश्किल से मिलता है क्योंकि इंगलैंड के मौसम का कभी भरोसा नहीं किया जा सकता। जब हम पहुंचे तो गाड़ी पार्क करने के लिए बीच के नज़दीक जगह मिल नहीं रही थी और जब मिली तो बहुत दूर मिली और हम को बहुत देर तक पैदल चलना पड़ा। जब हम बीच पर पहुंचे तो बहुत रौनक थी और हम ने सैर शुरू कर दी। चलते चलते हम फन फेयर की तरफ चले गए, सब से पहले हम एक बड़े से बुत्त के पास जा कर खड़े हो गए जिस को लाफिंग मैन कहा जाता था, अब भी यह वहां होगा मुझे पता नहीं लेकिन बहुत देर तक हम इस के पास खड़े खड़े हँसते रहे। यह लाफिंग मैन इतना हंस रहा था कि जो भी देखता, हंसे बगैर नहीं रह सकता था। हंसने का अंदाज़ ऐसा था कि कुछ क्षण रुक कर यह फिर ऊंची ऊंची हंसने और हिलने लगता, कभी हँसते हँसते दूहरा हो जाता और साथ ही सब देखने वाले हंसने लगते। इस के बाद हम ने टिकट लिए और फन फेयर के कम्पाउंड में घुस गए जो कई एकड़ जगह में फैला हुआ है और इतने किस्मों के झूले हैं कि हम को देख कर ही डर लगता था लेकिन लड़के लड़कियां तो उन पर चढ़ कर जोर जोर से चीखें मार रहे थे। हर तरफ बच्चों का शोर ही शोर था। मैं और निर्मल भी एक झूले पर चढ़ गए। यह बहुत बड़ा था और इस पर छोटे छोटे ऐरोप्लेन की शकल के बॉक्स बने हुए थे जिन में दो दो सीटें थीं। जब इस झूले पर तकरीबन बीस लोग हो गए तो यह झूला गोल गोल चक्क्र में घूमने लगा। घुमते घुमते यह साथ ही ऊंचा भी होने लगा। मैं और निर्मल ने अपनी पगड़ियों पर जोर से हाथ रख लिए ताकि पगडीआं उड़ ना जाएँ। अब हम ने इर्द गिर्द देखना तो किया था, बस अपने आप को सम्भाल रहे थे कि कहीं गिर ना जाएँ। कुछ ही देर में यह बहुत तेज़ी से घूमने लगा और हम घबरा गए। अपने सामने लोहे के हैंडल को हम ने बहुत जोर से पकड़ रखा था। अगर उस वक्त कोई हमारी फोटो खींचता तो हम कार्टून लगते। आखर में घंटी बजने लगी और फुल स्पीड पर घूमने लगा, बस ऐसा लग रहा था कि हम दुबारा इस पर फिर कभी नहीं चढ़ेंगे। कुछ देर बाद धीरे धीरे सब ऐरोप्लेन नीचे आने शुरू हो गए और हमारी जान में जान आने लगी। जब बिलकुल नीचे आ गए तो कुछ देर बाद खड़े हो गए। जब हम बॉक्स से बाहर आये तो शराबियों की तरह झूम रहे थे और हम हंस रहे थे।

एक घंटा हम फन फेयर में घूम कर लुतफ लेते रहे और फिर सड़क के दोनों तरफ बनी तरह तरह की दुकानों में जा कर खरीदो फरोख्त करने लगे। जाते जाते हम ने थ्री डी फिल्म देखने का मन बना लिया। उस समय एक पाउंड टिकट था और टिकट ले कर हम इस के भीतर चले गए। यह बहुत छोटा सा डोम शेप हाल था जिस में मुश्किल से पचीस तीस लोग ही आ सकते थे। कुछ लोग फ्लोर पर बैठ गए और कुछ खड़े हो गए। मैं और निर्मल खड़े रहे। यह थ्री डी फ़िल्में इतनी अच्छी थीं कि मज़ा ही आ गया। एक सीन हैलीकॉप्टर का था। जब फिल्म चली तो लगा हम सभी इसी हैलीकॉप्टर में बैठे हैं। हैलीकॉप्टर पहाड़ियों पर उड़ रहा था और हम नीचे पहाड़ों की चोटियां और बीच में बहती नदी को देख रहे थे। अचानक हैलिकउपर तेजी से नीचे की ओर जाने लगा और सब घबरा गए और कुछ लोग शोर मचाने लगे कि यह क्रैश हो जाएगा लेकिन जैसे ही जोर से नीचे गिरा कि फिल्म खत्म हो गई और सभी हंस पड़े। एक और फिल्म थी ट्रेन की, जिस में हम ट्रेन में बैठे तेजी से जा रहे थे। अचानक रेलवे लाइन पर आगे एक बैरियर आ गया और ट्रेन जोर के झटके से एक दम खड़ी हो गई, हमें झटका लगा और निर्मल गिरते गिरते बचा और बाद में सभी हंसने लगे। तीसरा सीन था एक आदमी के हाथ में तलवार थी और वह इसे घुमाता घुमाता हमारी तरफ आ रहा था। वह तलवार को हमारे मुंह की तरफ ले कर आ रहा था, जब हमारी तरफ तलवार लाता तो हमें लगता तलवार हमारे नाक पर लगेगी। फिर जब वह जोर से तलवार को हमारी तरफ जोर से लाया तो कुछ लोगों ने चीखें मार दीं। इस के एक दम फिल्म खत्म हो गई और इस छोटे से हाल में लाइटें ऑन हो गईं । आधे घंटे बाद हम बाहर आ गए। बाहर आये तो लोगों का एक और किऊ लगा हुआ था। इस को देखने का इतना मज़ा आया कि पैसे वसूल हो गए।

बाहर आ कर हम खाने के लिए जगह ढूंढने लगे। एक जगह बैंच देख कर हम बैठ गए। नर्मल बिलकुल शाकाहारी है, इस लिए उन की भावनाओं को मदेनजर रखते हुए हम घर से ही बहुत कुछ बना कर ले गए थे। भूख लगी हुई थी और जी भर कर हम ने खाया और कुछ देर आराम करने के बाद हम बीच पर आ गए। बीच पर रेत ही रेत थी और बहुत बच्चे सैंड कैसल बना रहे थे। समुन्दर का पानी काफी दूर चला गया था लेकिन हम वहां पहुँच ही गए और जूते उतार कर पानी में चलने लगे। गीले रेत पर जैली फिश पडी थीं और जगह जगह छोटे छोटे शंख और सिपीआं बगैरा पड़े थे। कुछ देर बाद हम वापस आ गए, एक टी शॉप में चाय काफी पी और कुछ देर इधर उधर घूमने के बाद वापस जाने की तयारी शुरू कर दी। अब समुन्दर का पानी भी धीरे धीरे किनारे की ओर आ रहा था और जो बच्चे सैंड कैसल बना रहे वह आ गए थे। कार पार्क में आ कर गाड़ी का तेल चैक किया किओंकी अब रास्ते में हम ने कहीं भी गाड़ी खड़ी नहीं करनी थी। जब हम चले तो बहुत लोग जाने शुरू हो गए थे और ट्रैफिक जाम लगा हुआ था और समुन्दर का पानी भी बिलकुल किनारे आ लगा था । यूं ही हम ट्रैफिक से निकले और मोटरवे पर पहुंचे , गाड़ी सौ किलोमीटर पर कर दी। इस से ज़्यादा तेज हम नहीं कर सकते थे क्योंकि मोटरवे पर मैक्सीमम स्पीड सतर मील प्रति घंटा ही है जो तकरीबन सौ किलोमीटर बनती है। दो घंटे में हम घर पहुँच गए।

इस के बाद निर्मल चिगवैल में हमारी बहन के घर रहने चला गया। हमारे बहनोई साहब कंस्ट्रक्शन के काम में थे, इस लिए निर्मल कुछ देर के लिए उन के साथ काम करने लगा। कुछ देर वहां रह कर निर्मल फिर हमारे पास आ गया। हम चाहते थे कि निर्मल को कोई काम मिल जाए, मगर काम कहीं मिल नहीं रहा था। दोस्तों से पूछ पूछ कर एक काम मिला लेकिन वह पैसे कोई अच्छे नहीं देते थे। अब निर्मल भी कुछ होम सिक हो गया था और उस ने जाने की तयारी कर ली। छै महीने का वीज़ा था और हम चाहते थे कि वीज़ा छै महीने का और एक्सटेंड हो जाए लेकिन निर्मल अब जाना चाहता था। सो एक दिन उस की सीट कन्फर्म करा दी गई और कुछ दिन बाद निर्मल इंडिया अपने गाँव में पहुँच गया था।

कितना भी हम अपने आप को फारवर्ड क्यों ना समझें लेकिन बेटिओं के बारे में दिमाग के किसी कोने में चिंता रहती ही है। दोनों बेटिओं की शादी हो जाने से मैं और कुलवंत कुछ कुछ अच्छा महसूस कर रहे थे। पहले पहल हम को बहुत अजीब सा महसूस होता था लेकिन जब हर कोई आ के कहता कि हम कबील्दारी से सुर्खरू हो गए थे तो सुन कर अच्छा लगता। जब रीटा की शादी के कुछ महीने बाद ही पिंकी ने एक बेटी को जनम दिया तो हम ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे क्योंकि हम नाना नानी बन गए थे और यह भी एक नया अहसास था । इस में भी एक अजीब बात हुई थी कि जब पिंकी और उन के सुसराल वालों ने पिंकी की बेटी का नाम रखना था तो इधर मेरे मन भी बहुत से नाम आ रहे थे। सकूल के ज़माने में हम फ़िल्में बहुत देखते रहते थे और उस समय चार ऐक्ट्रेस होती थीं अमीता, पद्मनी, रागनी, और विजंती माला जो बहुत परसिध थीं । अमीता की एक्टिंग हम ख़ास कर बहुत पसंद किया करते थे। जब हम पिंकी और उस की बेटी को देखने हस्पताल गए थे तो पिंकी की बेटी बहुत सुन्दर थी ,बिलकुल अपनी दादी पर गई थी और दादी बहुत गोरी है। जब दुसरी दफा हम पिंकी के घर घी और कपडे बगैरा ले के गए थे तो रास्ते में मुझे विचार आ रहे थे पिंकी की बेटी का नाम अगर अमीता रखा जाए तो बहुत सुन्दर लगेगा और जब हम पिंकी के सुसराल पहुंचे तो मेरी हैरानी की कोई हद नहीं रही जब उन्होंने पहले ही अमीता नाम रख लिया था, यह नाम पिंकी की सास ने रखा था। जब मैंने यह बताया तो सभी हैरान और खुश हो गए।

यूं तो हमारे सबी पोते दोहते हमारे साथ बहुत लगाव रखते हैं लेकिन अमीता हमारा बहुत करती है। उस के इमेल मुझे आते ही रहते हैं और हमें खुश रखती है। बजुर्ग हो जाने पर जो ख़ुशी इन पोते दोहते दोह्तिओं को देख कर होती है, वोह अब हम महसूस कर रहे हैं, इसी का नाम ही तो जिंदगी है। चलता. . . . . .

6 thoughts on “मेरी कहानी 133

  • Man Mohan Kumar Arya

    आज की किश्त कुछ ऐसी रोचक लगी कि यह कह सकता हूँ कि पूरी कथा एक सांस में पढ़ गया। आपकी लेखन कला रोचक एवं प्रभावशाली है। आरम्भ करने के कुछ समय बाद ही यह समाप्त हो जाती है, समय का पता ही नहीं चलता। सादर नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। ;

    • मनमोहन भाई , किश्त पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यावाद . आप कॉमेंट लिखते हैं और मुझे और आगे लिखने की प्रेरणा मिलती है . जब मैंने यह कहानी शुरू की थी तो मुझे नहीं पता था की इतने एपिसोड हो जायेंगे . यह आप लोगों की हौसला अफजाई ही है जो कुछ लिखने को उत्साहात करती हैं .

      • Man Mohan Kumar Arya

        धन्यवाद श्री गुरमेल सिंह जी। आपके ह्रदय की निर्मलता एवं पवित्रता अनुकरणीय है। आपकी कथा में आनंद आता है। इससे अन्यों को भी प्रेरणा मिलती है कि वह भी कुछ लिखें। सादर।

        • धन्यवाद , मनमोहन भाई .

  • लीला बहन , हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद . आप मेरे हर एपिसोड को पढ़ रही हैं, मुझे इस से अतिअंत ख़ुशी मिलती है .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, क्या गज़ब का लिखते हैं? सच कह रहे हैं, ऐसा सुंदर व रोचक लेखन हमने पहली बार देखा-पढ़ा है. एक और अच्छे एपीसोड के लिए आभार.

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