खट्ठा-मीठा : गली के सम्मान की ख़ातिर
हमारी गली की नम्बरदारनी इस बात से बहुत परेशान रहती है कि गली के कुत्ते अब उनकी परवाह नहीं करते। समय-कुसमय भौंकना, हर किसी पर भौंकना, ज़रूरत पड़ने पर न भौंकना और गाहे- बगाहे काट लेना उनकी आदतों में शुमार हो गया है। जो कुत्ते हमेशा उनके द्वारा फेंकी गई रोटियों के टुकड़ों पर पलते आये हैं, वे नम्बरदारनी के आने पर पूँछ हिलाने में भी आलस कर जाते हैं। कभी कभी वे गली छोड़कर भी भाग जाते हैं। इससे गली बदनाम होती है और नम्बरदारनी की शान घटती है।
इसलिए अब यह तय किया गया है कि गली के सभी चुने हुए कुत्तों को सौ रुपये के स्टाम्प पेपर पर वफ़ादारी का बॉण्ड भरना होगा। इस बॉण्ड में निम्नलिखित बातें शामिल होंगी-
1. वे गली और गली की नम्बरदारनी तथा उनके सपूत के प्रति हमेशा वफ़ादार रहेंगे यानी नमकहरामी नहीं करेंगे।
2. वे बिना इजाज़त नहीं भौंकेंगे।
3. आदेश मिलने पर वे पूरी ताक़त से भौंकेंगे।
4. वे कभी गली छोड़कर नहीं जायेंगे।
5. वे नम्बरदारनी या उनके सपूत के आने पर पूरी निष्ठा से पूँछ हिलायेंगे।
पता चला है कि गली के सभी कुत्तों ने इस बॉण्ड पर हस्ताक्षर कर दिये हैं और जो रह गये हैं उनसे कराये जा रहे हैं। यह सब गली के सम्मान की ख़ातिर किया जा रहा है।
नम्बरदारनी ने बॉण्ड भरने वाले कुत्तों को आश्वस्त किया है कि उनका रोटी-बोटी का उचित प्रबंध किया जाएगा और उनको पूँछ हिलाने के विशेष प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजा जाएगा।
बीजू ब्रजवासी
ज्येष्ठ कृ ४, सं २०७३ वि
यह वयंग्य पढ़ कर मज़ा आ गिया . यह चमचे ही तो हैं जिन की कोई कमी नहीं, कभी सिन्हा साहब जिंदाबाद तो कभी यही सिन्हा साहब मुर्दाबाद . जिस ने रोटी के टुकड़े ज़िआदा डाल दिए, उस की बल्ले बल्ले .
सर यह व्यंग्य क्या आजकल के कर्मचारियों पर कसा है जिनकी हर संस्था में कमोबेस ऐसी ही हालत होती है।
सर यह व्यंग्य क्या आजकल के कर्मचारियों पर कसा है जिनकी हर संस्था में कमोबेस ऐसी ही हालत होती है।
प्रिय विजय भाई जी, आपकी गली की नम्बरदारनी और उनके सपूत ने भी उस बॉण्ड पर हस्ताक्षर कर दिये हैं या नहीं! उनका भी कोई भरोसा नहीं, कब किस करवट बैठ जाएं. मज़ा आ गया. अति सुंदर व रोचक आलेख के लिए आभार.