माँ
चौपाई छ्न्द मात्रा भार =१६-१६
कण कण मे तेरी छवि है माँ
सुरभित हर आँगन की छवि माँ
प्रेम मृदुल उत्साह मे माँ है
लाल के हर सम्मान मे माँ है
माँ ही सीता माँ ही गीता
वेद पुराण की अनुपम सरिता
जल मे माँ है थल मे माँ है
स्वर और लय ताल मे माँ है
सूरज चंदा की जननी है
उनके वेग ओज मे माँ है
नभ मे घोर घटा संग बादल
कजरारे बदरी का काजल
प्रेम सुधा नित माँ बरसाती
ले लो कुसुमित मधुरित थाती
त्याग और बलिदान मे माँ है
प्रेरणा अरू सम्मान मे माँ है
नज़र उठा कर जहाँ भी देखो
हर किसलय मे माँ ही माँ है
राज कहाँ तक लिख पाएगा
माँ की निर्मल गौरव गाथा
नयन खोल कर जो भी देखा
हर लय यति तुक ताल म देखा
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
प्रिय ब्लॉगर राजकिशोर भाई जी, मां पर इतनी शानदार-जानदार कविता हमने कभी नहीं पढ़ी. इतनी उत्तम कविता के आप बधाई के पात्र हैं.
बहन जी प्रणाम आपके स्नेह के समतुल्य मेरे पास कोई शब्द नही किन शब्दों आपका आभार व्यक्त करूँ सादर आभार
सुन्दर
आदरणीया जी आपके आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए आभार