पोते ने बनाया केक
छुट्टी वाले दिन कोई नया काम करना है उसकी टेक,
कोई छुट्टी बिना नए काम के जाए न फेक,
इसलिए इस रविवार को हमारे पोते ने,
दादी की मदद से बनाया एक केक.
केक को बनाकर उस पर आइसिंग की गई,
आइसिंग में पेंटिंग की कारीगरी भी प्रयुक्त की गई,
ऊपर से पाइनेपिल के पीसेज़ रखकर,
उसकी सुंदर तस्वीर खींची गई.
अब आई केक के खाने की बारी,
केक कटर और प्लेट्स लाकर की केक काटने-खाने की तैयारी,
इतने में कॉल बेल की ट्रिन-ट्रिन हुई,
दरवाज़ा खोला तो आई थी बुआजी प्यारी-प्यारी.
सबसे पहले आधा केक उनको दिया गया,
पहली बार पोते के केक बनाने की खुशी को एप्रिशियेट किया गया,
एप्रिशियेट करने का यह मतलब नहीं कि
पोते की केक खाने की इच्छा को भुला दिया गया.
उसने सबको थोड़ा-थोड़ा केक दिया,
सबने केक खाकर दे अपनी-अपनी प्रतिक्रिया,
बीच-बीच में पोता भी केक खाता गया,
कहता गया शुक्रिया के लिए शुक्रिया.
हमने पूछा- ”How many orders of Cake you have got?
वह बोला- ”Three” हमने कहा ”दादी के लिए एक free?”
वह बोला- ”no-no it is my buisness, nothing free
May be my order upto twenty three.”
वह कर रहा था वाट्स ऐप पर मोल-भाव,
10 डॉलर से बारह डॉलर तक आ गया था उसके केक का भाव,
हम चुप बैठे रहे बनेगा फिर से केक तो चखने को तो मिलेगा ही,
खाने दो पोते को भी बिना मूछों के ही थोड़ा-सा ताव.”
पोते के अच्छे काम का अच्छा गुणानुवाद। कविता अच्छी लगी।
प्रिय मनमोहन भाई जी, बच्चे भगवान का रूप होते हैं, उनकी हर बाललीला गुणानुवाद के योग्य होती है. अति सुंदर व सार्थक टिप्पणी के लिए आभार.
वाहह पोते के हाथ का केक
मिठास अद्भुत काबीले तारीफ़
प्रिय राजकिशोर भाई जी, इस मिठास का जवाब नहीं. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
हा हा ,पोते ने केक बनाया और सब का मुंह मीठा कराया . बिन देखे यह केक मुंह में पानी आया .
प्रिय गुरमैल भाई जी, केक बहुत यमी-यमी बना था. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.