कविता

गंग दशहरा

गंग सकल सुखधाम अनूपा धवल वसन त्रिनेत्र स्वरूपा
भुजा चार अति शोभित गंगा , वरद अभय आलौकिक गंगा

हस्त नक्षत [नक्षत्र] युता तिथि होई – गंग दशहरा सम नहि कोई
काटे पाप दशों दिश भारी – अर्पण तर्पण की बलिहारी
जेठ दशहरा गंग नहाए मन वांछित निरखत फल पाए
पापी पाप नाशनी गंगा विष्णुपगा हरिहर हर गंगा 

— राजकिशोर मिश्र ‘राज’

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

One thought on “गंग दशहरा

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    गंग दशहरा के पावन पर्व पर माँ गंगा के भक्तों को नमन्
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    गंग दशहरा शुभ अवसर पे – कोटि-कोटि अभिनन्दन/
    माँ गंगा के श्री चरणों मे – अर्पण तर्पण वंदन/
    हस्त नखत [नक्षत्र ] युता तिथि उदभव पावन गंगा धरती/
    पाप नाशिनी विष्णुपगा माँ भक्त हिया मन चंदन
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    राजकिशोर मिश्र ‘राज’

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