गंग दशहरा
गंग सकल सुखधाम अनूपा धवल वसन त्रिनेत्र स्वरूपा
भुजा चार अति शोभित गंगा , वरद अभय आलौकिक गंगा
हस्त नक्षत [नक्षत्र] युता तिथि होई – गंग दशहरा सम नहि कोई
काटे पाप दशों दिश भारी – अर्पण तर्पण की बलिहारी
जेठ दशहरा गंग नहाए मन वांछित निरखत फल पाए
पापी पाप नाशनी गंगा विष्णुपगा हरिहर हर गंगा
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
गंग दशहरा के पावन पर्व पर माँ गंगा के भक्तों को नमन्
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गंग दशहरा शुभ अवसर पे – कोटि-कोटि अभिनन्दन/
माँ गंगा के श्री चरणों मे – अर्पण तर्पण वंदन/
हस्त नखत [नक्षत्र ] युता तिथि उदभव पावन गंगा धरती/
पाप नाशिनी विष्णुपगा माँ भक्त हिया मन चंदन
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राजकिशोर मिश्र ‘राज’