लघुकथा

मुझे भी सुनो ना !

सुधा सिर्फ एक गृहणी बन कर रह गई थी न तो कोई उसकी कही बातों को गौर से सुनता था न ही उसे कोई अहमियत दी जाती थी घर में। इसका कारण बस यही था कि वो एक गृहणी ही तो है करती तो कुछ नहीं, न ही कमाती है , हाँ उस पर तो उल्टा पैसा बर्बाद होता था कभी कपड़े सिलाने में कभी कोई ज़रूरत की चीज़ लेने में तो कभी उसके मायके से कोई शादी समारोह में जाना पड़ जाए तो वो अलग।
कहीं घूमने का प्रोग्राम बना लिया फिर तो घर में आफत आ जाती थी कि पता है कितनी मुशकिल से पैसे कमाए जाते हैं ऐसे गंवाने के लिए नहीं है।
सुधा शादी से पहले बहुत ही कुशल थी हर काम में माहिर थी, पढ़ी लिखी भी थी पर जाने खुद को घर में और घर के काम में इतना व्यस्त कर लिया था कि अपनी पहचान तक गंवा दी थी बस जब उस पर तानों की बौछार होती या किसी कमाने वाली बहु के साथ या अमीर घर की बेटी के साथ तुलना होती कि लाई क्या है तो छुप छुप कर आंसु बहाने और अपने आप को नकारा समझने के अलावा कुछ नहीं सुझता था। उसकी कही अच्छी और सही सलाह पर गौर तक नहीं किया जाता न ही ध्यान से सुना जाता यहां तक कि सुधा के पति भी उसे चुप ही रहने की सलाह देते और यही कह देते तुम्हें कुछ पता है भी कुछ देखा होगा तो बोलोगी न। सुधा बस इसी को अपनी किस्मत समझ जीए जा रही थी कि अचानक उसकी एक पुरानी दोस्त से मुलाकात हो गई वो थियेटर में काम करती थी उसने ही सुधा को उनके थियेटर के शौ के लिए लिखने को कहा। सुधा पहले तो हिचकिचा रही थी फिर अपनी ज़िंदगी में झांक कर देखा तो उसने खुद को आज़माने के लिए अपने खाली समय में लिखना शुरू कर दिया और उसका लिखना धीरे धीरे सबको पसन्द आने लगा और यहां तक कि उसे फिल्मों में गाने के बोल के लिए भी आफर आया उसने कोशिश की और विफलता के बाद आहिस्ता आहिस्ता सफलता भी मिलने लगी फिर तो वो पैसे भी कमाने लगी थी और उसे अपने आप में भी अच्छा लगता था अब तो घर में भी उसकी बात सुनी जाती थी। पति भी बदल गए थे और उसकी भी घर में सलाह ली जाती थी तानों का दौर खत्म हो चुका था। सबके स्वभाव में बदलाव आ गया था। सुधा भी खुश रहने लगी थी क्योंकि उसे भी सुना जाता था। वो भी अब हक से अपनी बात कह सकती थी।।।

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

3 thoughts on “मुझे भी सुनो ना !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लघु कथा अछि लगी .कथा को पढ़ कर एक बात मेरे मन में आई है ,कि माना सुधा ने घर में अपना मुकाम हासल कर लिया लेकिन हमारे जौयेंट फैमिली सिस्टम में बहुत नुक्स है, सुधा ने तो कामयाबी हासल कर ली लेकिन कितनि सुधा ऐसी हैं जिन में यह काब्लिअत नहीं होती ! शादी के बाद हर एक कपल को अपना घर बसाना चाहिए, माता पिता जिस के साथ रहना चाहें, ख़ुशी से रहें लेकिन यहाँ सभी भाई इकठे रहते हों, घर ककी शान्ति असंभव नहीं तो मुश्किल जरुर है .

    • कामनी गुप्ता

      धन्यवाद सर जी !

    • कामनी गुप्ता

      धन्यवाद सर जी !

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