ग़ज़ल
कहीं सजदे में सर झुकाना नहीं है
झुकाया तो वापस उठाना नहीं है
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अगर प्यार है तो बता भी दो हमको
छिपाने का कोई बहाना नहीं है
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तुम्हीं से शुरू खत्म तुम पर ही दुनिया
कहीं और अपना ठिकाना नहीं है
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भला हाल कैसे बताऊँ मैं दिल का
अदाएं सनम शायराना नहीं है
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वफाओं के किस्से, मुहब्बत के वादे
हकीकत है कोई फ़साना नहीं है
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खुदा का करम आज हासिल है खुशियाँ
इन्हें बेज़ा यूँ ही गंवाना नहीं है
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वो बचपन की यादों का सुंदर खजाना
है ज़ेहन में ताजा पुराना नहीं है
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‘रमा’ भीड़ में एक पहचान रखना
कि गुमनाम जीवन बिताना नहीं है
रमा प्रवीर वर्मा …