धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मृत्यु के समय मनुष्य का अन्तिम वेदोक्त कर्तव्य

ओ३म्

 

यजुर्वेद 40/15 मंत्र और उसका ऋषि भक्त स्वामी अच्युतानन्द सरस्वती कृत पदार्थः

 

वायुरनिलममृतमथेदं भस्मान्तंशरीरम्।

ओ३म् क्रतो स्मर क्लिबे स्मर कृतंस्मर।।

 

मन्त्र का पदार्थः- हे (क्रतो) कर्म कर्ता जीव ! शरीर छूटते समय तू (ओ३म्) इस मुख्य नाम वाले परमेश्वर का (स्मर) स्मरण कर। (क्लिबे) सामर्थ्य के लिये परमात्मा का (स्मर) स्मरण कर। (कृतम्) अपने किये का (स्मर) स्मरण कर। (वायुः) यह प्राण अपानादि वायु (अनिलम्) कारण रूप वायु जो (अमृतम्) अविनाशी सूत्रात्मारूप है उस को प्राप्त हो जायगा। (अथ) इस के अनुसार (इदम् शरीरम्) यह स्थूल शरीर (भस्मान्तम्) अन्त में भस्मीभूत हो जायगा।

 

मन्त्र का भावार्थ–शरीर को त्यागते समय पुरुषों को चाहिये कि, परमात्मा के अनेक नामों में सब से श्रेष्ठ जो परमात्मा को प्यारा ओ३म् नाम है, उसका वाणी से जाप और मन से उस के अर्थ सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर का चिन्तन करें। यदि आप, अपने जीवन में उस सबसे श्रेष्ठ परमात्मा के ओ३म् नाम का जाप और मन से उस परम प्यारे प्रभु का ध्यान करते रहोगे तो, आपको मरण समय में भी उसका जाप और ध्यान बन सकेगा। इसलिए हम सब को चाहिये कि ओ३म् का जाप और उसके अर्थ परमात्मा का सदा चिन्तन किया करें, तब ही हमारा कल्याण हो सकता है, अन्यथा नहीं।

 

इस मन्त्र में स्वयं परमात्मा ने मनुष्यों को शिक्षा दी है कि जब उनकी मृत्यु का समय आये तो वह क्या करें? यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है और इसका उत्तर भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यदि यह ईश्वरीय शिक्षा उपलब्ध होती तो हमारे विद्वानों ऋषि मुनियों को इस विषय में कई प्रकार के विधान करने पड़ते। महर्षि दयानन्द ने स्वयं भी इस ईश्वरीय शिक्षा का इसका पालन किया था और उनका अनुकरण करते हुए उनके अनेक शिष्यों ने भी इसका पालन किया। इस मन्त्र में कहा गया है कि मरण को प्राप्त होने वाला जीवात्मा अपनी मृत्यु के समय में परमात्मा के सबसे श्रेष्ठ नाम ओ३म् का वाणी और मन से जाप ध्यान करे। ऐसा तभी सम्भव है कि जब हम अपने मृत्यु से पूर्व के जीवन में भी ओ३म नाम के जाप का अभ्यास करेंगे। यदि अभ्यास नहीं होगा तो यह सम्भव है कि हम भय व दुःख आदि के कारण इसे भूल जाये और संसार से जाते समय इस अन्तिम वेदोक्त धर्म का पालन न कर सकें। इस शिक्षा के महत्व के कारण यह आवश्यक है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में ईश्वर के मुख्य नाम ओ३म् नाम का जप करने के साथ उसका मन के द्वारा ध्यान भी करना चाहिये। हम अनुभव करते हैं कि यह बात देखने में साधारण है परन्तु इसका महत्व बहुत महान है।

 

मनमोहन कुमार आर्य

2 thoughts on “मृत्यु के समय मनुष्य का अन्तिम वेदोक्त कर्तव्य

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में ईश्वर के मुख्य नाम ओ३म् नाम का जप करने के साथ उसका मन के द्वारा ध्यान भी करना चाहिये. अति सुंदर व सार्थक आलेख के लिए आभार.

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। सादर।

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