कविता : कच्चे धागे
कभी अजनबी…
कभी पहचाने से
तुम लगो !
बँध गया है इक रिश्ता,
कच्चे धागे से !!
मर्यादित है…
ना बांधो इसे
रिश्तों में !
बिन नाम के भी प्यारे से
रिश्ते होते हैं !!
न प्यार है…
न है दोस्ती,
यूँ हम-तुम में !
बस तुम से बातें करना
अच्छा लगता है !!
रहेंगे सदा…
बँध कर,
अपनी परिधि में !!
वरना टूट जाएगा
कच्चे धागे से बँधा ये रिश्ता !!
अंजु गुप्ता