कविता

दोहे “मत करना अब माफ”

दशकों से आतंक को, देश रहा है झेल।
सही समय अब आ गया, मेटो इनका खेल।।

करो चढ़ाई पाक पर, रचो नया भूगोल।
नक्शे पर से कीजिए, नाम पाक का गोल।।

पूरी दुनिया मानती, जिसको दहशतगर्द।
ऐसे दहशतगर्द का, कौन बने हमदर्द।।

जिसकी नस-नस में भरा, मक्कारी का खून।
जिबह करो उस जीव को, रचो नया कानून।।

चाहे कुछ अंजाम हो, मत करना अब माफ।
खेती झूठ-फरेब की, जड़ से करना साफ।।

विषधर का फन कुचलना, इंसानों का काम।
पागल के मुख पर कसो, ढँग से आज लगाम।।

सीना छप्पन इंच का, कब आयेगा काम।
रावण जैसे पाक को, मारो अब हे राम।।

— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है