कविता : अजनबी
जो कभी कसमें खाया करता था मेरे नाम की
आज, अजनबीयत का गिलाफ ओढ़े…
मिला था मुझको ! !
जिसे धड़कन की तरह बसाया था इस दिल में
बना, किसी और को धड़कन दिल की…
मिला था मुझको ! !
आज यूँ तो हममें थे चंद कदमों के ही फासले
फिर भी, दिलों में मीलों की दूरी लिये…
मिला था मुझको ! !
अंजु गुप्ता