कविता
मन के भाव , हृदय के उद्गगार,
जब फूट पड़ते हैं
तब कविता बनती हैं ।
जब होती है
हृदय से आत्मानुभूति ,
तब मन के भावों की
अभिव्यक्ति होती है
तब कविता बनती है।
कवि जब रसानुभूति कर
लय और ताल में
प्रकट करता है
तब कविता बनती है ।
किसी विषय के मर्म को
समझना, जानना, पहचानना
यही है कविता का रूप स्वरूप ,
सागर में डूब कर
रत्न निकाले जाते हैं ।
विचारों में खो कर
भाव उकेरे जाते हैं ,
रस को छंदबद्ध किया जाता है
तब कविता बनती है ।
कवि और कविता दोनों
एक दूसरे के पूरक हैं ।
कविता में कवि दिखाई देता है,
कवि में कविता दिखाई देती है ।
कवि जब कवितामय हो जाता है
तब कविता बनती है ।
— निशा गुप्ता, तिनसुकिया, असम