गीत : उतर आकाश से थे जब आए
उतर आकाश से थे जब आए, कहाँ पहुँचे हैं समझ कब पाए;
पूछने पर ही जान हम पाए, टिकट का लेखा ध्यान ना लाए !
यान उतरा था क्षितिज से आकर, समय बदला रहा था यात्रा कर;
हाल मौसम का रहा था दीगर, रहा आचार नियम परिवर्तन !
रहे थे समाचार अलग थलग, रहे टर्मीनलों के जाल विलग;
पूछना पड़ा कहाँ पहुँचे हम, तभी जाने का बना संसाधन !
शून्य से आके भी यही होता, कहाँ पहुँचे हैं भान ना होता;
देश कालों का ज्ञान ना रहता, पात्र भी स्वयं कुछ बदल जाता !
समन्वय पुन: पुन: मन करता, किए अनुभूति ध्यान हर रहता;
‘मधु’ जब आते प्रभु से मिलके, भूले भटके से कभी वे लगते !
— गोपाल बघेल