संस्मरण

मेरी कहानी 174

गैलाबाया और पगड़ी पहन कर शर्माते शर्माते जब हम बार में पहुंचे, तो देखा वहां सभी हंस रहे थे। इस का कारण एक और भी था कि गैलाबाया के नीचे सब पैंटी ही पहने हुए थे। इस से ही सभी ऊंची ऊंची हंस रहे थे। औरतें भी अरबी ड्रैस पहने हुए थीं और सर पर सुन्दर हिजाब थे। अनीता की ड्रैस भी बहुत सुन्दर थी और सर पर रेशमी कपडे की सितारों से जड़ी हुई हरे रंग की दुपट्टे जैसी हिजाब थी जो उस को बहुत सुन्दर बना रही थी। सभी अँगरेज़ औरतें इन कपड़ों में परियों जैसी दीख रही थीं। कुछ देर बाद सभी नॉर्मल हो गए और बीयर का मज़ा लेने लगे। स्टेज पर अरबी मयूजिक बजने लगा और एक लड़की बैली डांस करने लगी। यह डांस पहले जैसा ही था लेकिन अब वोह डांसर लेडीज़ को पकड़ पकड़ कर डांस फ्लोर पर ले आने लगी। धीरे धीरे सभी आने लगे और औरतें अपनी अपनी हिप को उस लड़की की तरह घुमाने लगीं और हंसने लगी। जसवंत भी इस में शामल हो गया। मेरी रूचि इस में नहीं थी और मेरे जैसे और लोग भी थे। एक वेस्ट इंडियन काला और उस की गोरी पत्नी भी डांस करने लगे। वोह वेस्ट इंडियन बिलकुल भद्दा नाच रहा था, फिर भी गोरे तालियां बजा रहे थे। बहुत देर तक ऐसे ही सब डांस करते रहे और ऊंची ऊंची हँसते रहे। फिर एक कंपीटिशन शुरू हो गया। यह एक प्रकार की गेम थी, जिस में सभी ने भाग लेना था। यह खेल कोई आधा घँटा चला जिस में जसवंत ने भी एक प्राइज़ जीत लिया।
अब तीन इजिप्शियन जोकर आ गए। दो आदमी एक घोडा बने हुए थे। एक आदमी झुका हुआ, अपनी दोनों टांगों और हाथों के बल पर चल रहा था और दूसरा भी झुका हुआ तो था लेकिन सिर्फ दोनों टांगों पर ही और उस के दोनों हाथ घोड़े के मुंह जैसे बने मास्क में डाले हुए थे, जिस से वोह सारी ऐक्टिंग कर रहा था। देखने को यह बिलकुल घोड़े जैसा दिखाई देता था जैसे घोड़े पर सुन्दर कपड़ा पहना कर सजाया गया हो क्योंकि दोनों के ऊपर घोड़े की ड्रैस पहनी हुई थी। तीसरा आदमी इस घोड़े की लगाम को पकड़ कर घोड़े को हर टेबल पर ले जा रहा था। सारी ऐक्टिंग घोड़े के मुंह से ही हो रही थी। वोह सब बातें तो मुझे याद नहीं लेकिन इतना याद है कि वोह तीसरा आदमी मुंह से बोल रहा था और घोड़े का मुंह हर गोरी के मुंह पर ऐक्टिंग करता और साथ ही घोड़े जैसी आवाज़ बोलता, लगता था इस मुंह में माइक्रोफोन फिट किया गया हो । गोरीआं हंस हंस लोट पोट हो जातीं। घोड़े का मुंह गोरी के गालों को चूमता और पुच पुच जैसी आवाज़ निकलती। कोई आधा घंटा यह घोडा सब को हंसाता रहा। आखर में वोह आदमी हर एक को दबके मार कर ऑर्डर करता कि तू चल उस डांस फ्लोर पर। अगर वोह ना उठता, तो वोह शाउट करता और कहता, ” सुना नहीं ! उठ, नहीं तो तुझे इस हंटर से पीटूंगा “, उस के हाथ में छोटे से हंटर जैसा डंडा था। सारे लोग उस की ऐक्टिंग से हंस हंस दुहरे हो रहे थे। आखर में सब लोग अरबी ड्रैस पहने हुए डांस फ्लोर पर इकठे हो गए। अब अरबी मयूजिक शुरू हो गया और वोह इजिप्शियन लड़की भी बैली डांस करने करने लगी। उस के साथ ही सभी उस की नक़ल करने लगे। एक तो बीयर का नशा और दूसरे अरबों जैसा वातावरण तीसरे अरबी मयूजिक, बस एक स्वर्गीय नज़ारा बन गया था । जब हम अपने अपने कमरों में जाने को तैयार हुए तो अनीता और उस की मां आ गईं और हम को कहने लगीं कि हम उन की फोटो लें ताकि यह याद रह जाए। हम ने अरबी कपड़ों में फोटो खींची और मैंने वीडियो भी बनाई। यहां यह भी लिख दूँ कि जब हॉलिडे से वापस आये थे तो मुझे अनीता ने एक पत्र लिखा था और ऐसा ही जसवंत को भी लिखा था। हम ने उस का जवाब भी दिया था लेकिन इस के बाद कोई खत नहीं आया और न ही हम ने लिखा। याद नहीं कितने बजे यह सब ख़तम हुआ लेकिन यह रात एक यादगारी रात बन कर रह गई है।
हमारी क्रूज़ बोट भी चली जा रही थी। सुबह हम ने फिले टैम्पल और असवान डैम देखने जाना था। हम अपने अपने कमरों में जा कर सो गए थे। क्रूज़ बोट सारी रात चलती रही। सुबह एक जगह आ कर खड़ी हो गई। नील दरिया के किनारे किनारे ऐसे क्रूज़ बोट पार्किंग एरिये बने हुए हैं जैसे सीपोर्ट होती है। अब हम ने फिले टैम्पल देखने जाना था। इस का सफर हम ने एक कश्ती जिस को फ्लूका बोलते हैं से ट्रैवल करना था। यह फ्लूका काफी बड़ी थी। एक बात है कि अँगरेज़ लोग हैल्थ ऐंड सेफ्टी पर बहुत धियान देते हैं। सभी यात्रियों को शरीर पर सेफ्टी जैकेट पहना दी गईं ताकि अगर कश्ती पानी में उल्ट जाए तो बचाव हो सके। एक एक करके सभी फ्लूका में बैठने लगे। यह फ्लूका मोटर से चलती थी। याद नहीं कितनी देर लगी, बस इतना याद है कि जब हम फिले टैम्पल पहुंचे तो एक एक का हाथ पकड़ कर किनारे ले आने लगे। आगे खंडरात ही खंडरात नज़र आ रहे थे। बड़ी बड़ी दीवारों पर पुरातन इजिप्शियन फैरो और आम लोगों की तस्वीरें पत्थरों पर खुदी हुई थी। देखने को तो जिधर भी जाते थे हर जगह ऐसे ही टैम्पल दिखाई देते थे लेकिन हर टैम्पल का अपना ही इतिहास था जिस को सिर्फ गाइड ही बता सकता था कि इन तस्वीरों के किया अर्थ हैं। आइशा ने बताया कि जब असवान डैम बनना था तो यह सब मौनूमैंन्ट लेक में डूब जाने थे। यूनैस्को ने ही इन को बचाया था। यह जो टैम्पल हैं, उस लेक की जगह से पीस बाई पीस यहां लाया गया था। इन में सब से ज़्यादा महत्व वाले मौनूमैंट अबहु सिंबल है जो दूर किसी जगह जोड़ा गया था, जिस जगह का नाम मुझे अब याद नहीं। हम ने यह अभूसिंबल देखने का प्लैन भी बनाया था लेकिन जा नहीं सके। अभूसिंबल के सभी स्टैचू पीस बाई पीस वहां ले जाए गए थे और सारा काम यूनेस्को की तरफ से ही किया गया और इस पे पांच सौ मिलियन पाउंड खर्च आया था। इन सारे मौनूमैंट्स को देख कर लगता ही नहीं था कि इन को किसी और जगह से लाया गया था। बिलकुल ऐसा ही लगता था, जैसे हज़ारों सालों से यह यहां ही खड़े हैं। आगे गए तो एक बहुत बड़ा टैम्पल था। अब आइशा ने एक कहानी सुनाई कि कोई आजड़ी अपनी बकरियां चरा रहा था कि अचानक एक जगह धड़ाम से ज़मींन नीचे जा गिरी और साथ ही उस की बकरी भी। नीचे जाना बहुत कठिन था क्योंकि बकरी बहुत ही नीचे गिर गई थी। शोर मच गया और एक बड़ी सीढ़ी लगाईं गई। जब एक शख्स नीचे गया तो देख कर ही हैरान हो गया कि नीचे पेंटिंग्ज ही पेंटिंग्ज थीं और कमरे ही कमरे थे, जिन पर इतिहास लिखा हुआ था।
अब आइशा ने हमें सुझाव दिया कि हम खुद वोह पेंटिंग्ज देखें लेकिन एक बात है कि नीचे जाने के लिए अभी भी लकड़ी की सीढ़ी लगी हुई है, सो अगर जाना है तो ज़रा धियान से सीढ़ी पर अपने पैर रखना क्योंकि अभी भी नीचे कुछ कुछ अँधेरा है। कुछ आगे गए और एक बहुत ही बड़ी बिल्डिंग में कुछ लोग पहले ही इन गुफा को देखने के लिए जमा थे। जब हमारा ग्रुप वहां पहुंचा तो एक एक करके हम भी सीढ़ी से नीचे उतरने लगे। यह जगह इतनी तंग थी कि बस जितनी जगह थी, उतनी ही चौड़ी सीढ़ी थी और बहुत धियान से नीचे उतरना पड़ता था, एक इजिप्शियन इस सीढ़ी के पास बैठा था और अगर कोई न उत्तर सके तो उस की मदद करता था, एक एक करके जब हम नीचे गए तो देख कर ही अचंभित हो गए। सभी दीवारें पेंटिंग्ज से भरी हुई थीं और साथ साथ पुरातन भाषा में बहुत कुछ लिखा हुआ था। लाइट बहुत कम थी लेकिन सभी पेंटिंग्ज इंटैक्ट थी, कोई भी समय के साथ साथ खराब नहीं हुई थीं। याद नहीं कितनी देर हम नीचे रहे लेकिन यह नज़ारा कभी भूल नहीं सकूँगा। अभी तक मेरे दिमाग में वोह तस्वीर वसी हुई है। इस के बाद हम ऊपर आ गए और कई मौनूमैंट देखे। सब पथर ही पत्थर था और यह भी मालूम हो गया कि पत्थर का इतना इस्तेमाल क्यों किया गया। जब हर जगह पत्थर ही पत्थर हों तो समझना मुश्किल नहीं है कि सारे मिस्र में इतने पत्थरों के टैम्पल क्यों हैं। सवाल तो एक ही था कि इतने भारी पत्थरों को असैम्बल कैसे किया होगा, जबकि उस समय कोई करेन नहीं होती थी।
याद नहीं कितनी देर हम यहां रहे और वापस फ्लूका में बैठ कर अपनी क्रूज़ बोट की तरफ चल पड़े क्योंकि डिनर का वक्त हो रहा था। कुछ ही देर बाद हम खाना खा रहे थे। खाने के बाद कुछ देर ऊपर आ कर डैक चेअऱज़ पर आराम फरमाने लगे। कोई दो घंटे के बाद आइशा फिर आ गई और अब हम ने असवान डैम देखने जाना था जो लेक नासर पर बना हुआ है। इस के लिए हम कोच में बैठ गए। याद नहीं कितनी देर लगीं और अब हम डैम के नज़दीक पहुँच गए। यहाँ दरिया नील बहुत चौड़ा और विशाल था। एक जगह कोच खड़ी हो गई और हम सब डैम की तरफ चलने लगे। कुछ देर चलने के बाद अब हम डैम के ऊपर चल रहे थे। यहां बहुत लोग इस को देखने आये हुए थे। एक जगह एक साइड पर बड़े बड़े नोटिस बोर्ड लगे हुए थे, जिन पर डैम का सारा नक्शा और दरियाए नील को अछि तरह दर्शाया हुआ था। एक ओर सामने बहुत बड़ा बिजली घर दिखाई दे रहा था और दुसरी तरफ नील के बाँध के गेटों से पानी की बड़ी बड़ी धाराएं बह रही थीं, तो दुसरी तरफ दरिया नील का पानी दीख रहा था। यहां हम डैम के ऊपर खड़े थे दरिया की चौड़ाई कमसेकम एक फर्लांग होगी लेकिन दूर तक नज़र से यह एक बहुत बड़ी झील ही दिखाई देती थी और इस का नाम भी लेक नासर ही था। आइशा ने तो बहुत कुछ बताया था लेकिन मुझे कुछ कुछ ही याद रहा है। इतना याद है कि इस डैम को बनाने में नासर को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। इस डैम को बनाने पर इजिप्ट का इतिहासक नुक्सान बहुत हुआ था क्योंकि इस जगह ही ज़्यादा इज्पिट की पुरानी सभ्यता के नूबियन लोग रहते थे, जिन को यहां से दूर ले जाय गया और यह सारा एरिया पानी में हमेशा के लिए डूब गया। यहां से ही यूनेस्को ने अभूसिंबल जैसे बहुत से टैम्पल बचाये जिन में से कुछ जर्मन फ्रैंच और अँगरेज़ अपने अपने देशों को ले गए। यह देश, यह इतिहासिक आर्टिफैक्स मुफ्त में नहीं ले के गए, इस के लिए इन लोगों ने बहुत काम किया था। इन में से कुछ लंदन के ब्रिटिश मयूज़ियम में रखे हुए हैं।
मैंने अपने पंजाब में भाखड़ा डैम भी देखा हुआ था लेकिन यह असवान डैम उस से कहीं बड़ा था। आइशा ने बताया कि इस दरिया पे एक डैम १९०२ में अंग्रेजों ने भी बनाया था लेकिन यह इतना कामयाब नहीं हुआ था। यह डैम बनाने का मकसद सिर्फ बिजली पैदा करना ही नहीं था बल्कि इस दरिया में बाड़ आने से हर साल जो नुक्सान होता था, उस से भी बचाव करना था। जब भी बाढ़ आती थी, जान माल और फसल को भारी नुक्सान पहुँचता था। एक घँटा हम यहां घुमते रहे और आखर में जब जाने लगे तो आइशा हंस कर बोली,” इस लेक में क्रॉकोडायल बहुत हैं, ज़रा धियान रखें, कोई क्रॉकोडायल तुमारा पीछा ना कर रहा हो “, इस पर सभी हंस पड़े और कोच की तरफ जाने लगे। कोच में बैठ कर हम अपनी बोट की तरफ रवाना हो गए। जब अपनी बोट में पहुंचे तो शाम हो गई थी। कुछ देर बैठ कर मैं और जसवंत बाहर घूमने चल पड़े। आइशा का काम अब ख़तम हो गया था और अब जो भी हम ने देखना था,हमारी मर्ज़ी थी। इस बोट में अब हमारा एक दिन ही रह गया था और इस के बाद दूसरे दिन शाम को हम ने विंटर पैलेस होटल में चले जाना था। कई लोगों ने किसी और होटल में जाना था, यहां उन की बुकिंग की गई थी लेकिन आखर में हम ने एक ही ऐरोप्लेन में वापस इंग्लैंड जाना था।
मैं और जसवंत ने अपने बाल पीछे की ओर रिबन से बांधे हुए थे । जब हम किसी दूसरे देश में जाते हैं तो उन के देश की बहुत बातों का हम को गियान नहीं होता। हम को यह बिलकुल मालूम नहीं था कि इस देश में मर्दों के बाल पीछे बाँधने के किया अर्थ थे। इस में एक बहुत ही हंसी वाली बात थी जो हम को उस दिन ही पता चला और हम ने सर पर पगड़ीआं दुबारा रख लीं। जब हम बाजार में घूम रहे थे, तो हम को बिलकुल मालूम नहीं था कि इजिप्शियन लोग हम को gay समझ रहे थे। यह तब हम को पता चला जब हम घूम रहे थे तो एक लड़का हमारे पीछे पीछे चलने लगा और हमारे नज़दीक आ कर बोला, ” मैं आप को खुश कर दूंगा, मुझे सिर्फ सौ इजिप्शियन पाउंड दे दो “, पहले तो हम कुछ समझे नहीं लेकिन जसवंत जल्दी ही समझ गया और जोर से उस को बोला, ” भागता है, या पुलिस बुलाऊँ “, वोह लड़का भाग खड़ा हुआ और हम हंसने लगे। इसी तरह एक दफा फिर हुआ, उस को भी हम ने डांटा और वोह भी भाग गया। इस से एक बात और भी पता चली कि यहां टूरिस्ट का बहुत खियाल रखा जाता है और पुलिस ऐसे लोगों से सख्ती से पेश आती है, जो कोई टूरिस्ट को तंग करे। इस के बाद हम ने एक दिन भी पगड़ी सर से नहीं उतारी। अब तो यह भी पता चल गया कि पगड़ी वाले को बहुत अच्छा समझते हैं क्योंकि इज्प्शिन लोग खुद पगड़ी बांधते हैं।
सैर करके जब हम वापस आये तो शाम के खाने का वक्त होने वाला ही था। बार में जा कर हम ने दो दो बीयर की बोतलें पीं और उन इजिप्शियन लोगों की बातों पर हंसते रहे। अब सब डाइनिंग हाल में जाने लगे। टेबल पर बैठे खाना खा रहे थे और अनीता और उस की माँ से बातें हो रही थीं कि हमारा यह साथ बहुत अच्छा रहा था। अनीता बोल रही थी कि वोह इंगलैंड जा कर हम को खत लिखेगी। क्योंकि एक हफ्ता हम चारों ने खाना एक ही टेबल पर खाया तो यह बातें भूलने वाली तो हो ही नहीं सकतीं। चलता. . . . . . . . .