ग़ज़ल (रिश्तों के कोलाहल में ये जीवन ऐसे चलता है )
किस की कुर्वानी को किसने याद रखा है दुनियाँ में
जलता तेल औ बाती है कहतें दीपक जलता है
पथ में काँटें लाख बिछे हो मंजिल मिल जाती है उसको
बिन भटके जो इधर उधर ,राह पर अपनी चलता है
मिली दौलत मिली शोहरत मिला है यार कुछ क्यों
जैसा मौका बैसी बातें ,जो पल पल बात बदलता है
छोड़ गया जो पत्थर दिल ,जिसने दिल को दर्द दिया है
दिल भी कितना पागल है ये उसके लिए मचलता है
रिश्तों को ,दो पल गए बनाने में औ दो पल गए निभाने में
“मदन ” रिश्तों के कोलाहल में ये जीवन ऐसे चलता है
ग़ज़ल (रिश्तों के कोलाहल में ये जीवन ऐसे चलता है )
मदन मोहन सक्सेना