कदम-कदम आगेे… ।
वर्तमान कहता मुझे
सुखमय जीवन का राह दिखाते हुए
भूल जाओ अतीत की यादें।
आइने में
अपने सुंदर छवि को देखते
मधुमय उपवन में आराम लेते
चमक-धमकों के
जग में तुम
मशगूल होते
अपने को धन्यभागी मानते
चलते जाओ..
चलते जाओ..।
यह मेरे साथ
हो सकता है कैसे..
मेरा तन-मन जो है
अतीत की वेदना से पाला-पोसा है।
क्या मैं अपनी माँ को भूल जाऊँ
मिट्टी के इस कण-कण को
निष्ठामयी श्रमजल से
सींचा पौधा मैं
हर डाली की धमनियों में
जलते-जलते
लालिमा भर दी अमृतधारी ने
मेरी हर रौनक में
अश्रुजल छिपी है उस दिव्य मूर्ति का
हरबार मैं
अपने अम्मी जान को याद दिलाते
कदम-कदम ..
मंगलमय मानव संसार की ओर
बढ़ते जाऊँगा
बढ़ते जाऊँगा ।