गीत समर्पित करता हूँ
प्रेम पर्व पावन बेला पर, गीत समर्पित करता हूँ।
जीवन का क्षण क्षण मैं तुमको, मीत समर्पित करता हूँ।
देने को तो शायद तुमको
और न कुछ मैं दे पाऊँ
नौका प्रिये गृहस्थी की भी
मुश्किल से ही खे पाऊँ
ये उपहार तुम्हारे प्रति है, प्रीत समर्पित करता हूँ।
इन संघर्ष भरी राहों पर
कब तुमने वैभव चाहा !
मात्र प्रेम ही माँगा तुमने
प्रेम गीत सुनना चाहा
हृद-वीणा की धड़कन लो,संगीत समर्पित करता हूँ।
संग रही झंझावातों में
हर मुश्किल में साथ दिया
रहा हाथ में हाथ तुम्हारा
मुझे हारने नहीं दिया
जो भी मेरे हिस्से आयी, जीत समर्पित करता हूँ।
:प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’