गीत/नवगीत

धर्म के बढते हुए व्यापार को…

धर्म के बढते हुए व्यापार में
आग ये कैसी लगी बाजार में
जल गये रिश्ते बचा कुछ भी नही
नफ़रतों से जल रहे संसार में

मंत्र वेदो के सभी झुठला दिये
देखिये तो एक सत्ता मंत्र ने
फाड डाली प्रेम की झीनी चुनर
दुष्टता के बढ रहे इस तंत्र ने
मिट रही है भावना सदभावना
खेल की इस जीत में इस हार में…
जल गये रिश्ते बचा कुछ भी नही
नफ़रतों से जल रहे संसार में…

पट गयी जब पापियों से ही जमीं
पाप कब तक धोयगी यह पावनी
देखते सब गंग को बहते हुए
दर्द कोई मात का समझा नही
धो रहे पापी लहू के हाथ भी
पावनी की बह रही इस धार में…
जल गये रिश्ते बचा कुछ भी नही
नफ़रतों से जल रहे संसार में…

मात को दुत्कारता है आदमी
ओर क्या अब देखना बाकी रहा
आदमी को मारता है आदमी
ओर क्या अब देखना बाकी रहा
अब दुशाशन चीर करते है हरण
देखिये भगवान के दरबार में…
जल गये रिश्ते बचा कुछ भी नही
नफ़रतों से जल रहे संसार में…

आदमीयत को निगलती आग को
रोकिये डँसते हुए हर नाग को
वक्त हाथों से निकल जाये नही
धोइये दामन लगे हर दाग को
दाग तुम यदि ये मिटा पाये नही
नाम आयेगा तुम्हारा हार में…
जल गये रिश्ते बचा कुछ भी नही
नफ़रतों से जल रहे संसार में…

  1. सतीश बंसल
    १९.०२.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.