ग़ज़ल
हर अजीमत से मेरा ज़ज्ब जवां होता है
देखता हूँ मैं कभी दर्द कहाँ होता है |
बिन कहे जिसने किया जीस्त के सब संकट नाश
नाम उसका खुदा रहमत है या माँ होता है |
हाट जिसमें बिके जन्नत की टिकिट धरती पर
नाम उसका यहाँ धर्मों की दुकां होता है |
लोग ऐसे नहीं बदनाम किसी को करते
आग लगती है तो हर ओर धुआं होता है |
जो भी आया यहाँ सबकी मिटी है हस्तियाँ
जिसने कुछ काम किया उसका निशाँ होता है |
आपसी प्यार से ही लोग जुड़े आपस में
बिन मुहब्बत के तो घर एक मकां होता है |
हैं चतुर नेता सभी, काम बताते कुछ भी
हर कदम में कोई इक राज़ निहां होता है |
जज अदालत भले फटकार लगाए उनको
रहनुमा को किसी से शर्म कहाँ होता है |
अब पढ़ाई हो गई ख़त्म सियासत आरम्भ
आज का देख ये हालात गुमां होता है |
शब्दार्थ : अजीमत =संकल्प ,निश्चय
ज़ज्ब = कशिश ,मोह , लगाव
कालीपद ‘प्रसाद’