उपन्यास अंश

आजादी भाग –३९

दारोगा दयाल एक कुशल चालक भी था और इस समय वह अपनी पूरी कुशलता से जीप को उसकी क्षमता के अनुसार पूरी गति से भगाए जा रहा था । उसकी पैनी निगाहें गाड़ी से भी तेज दौड़ रही थीं । एक के बाद एक कई गाड़ियों को वह ओवरटेक कर चुका था फिर भी उसे वह सफ़ेद टेम्पो कहीं नजर नहीं आ रहा था । जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही थीं । उसका अंदाजा था कुछ ही देर में कमाल पकड़ा जायेगा लेकिन अब दूर दूर तक उसका कहीं नामोनिशान दिखाई नहीं पड़ रहा था सो पेशानी पर बल पड़ना स्वाभाविक ही था । हकीकत से नावाकिफ दरोगा शर्मा और उसके साथी भी अपनी नाकामी से झुंझला रहे थे । उसे यह बड़ा ही अजीब लग रहा था कि दो मिनट के अन्दर ही वह गाड़ी किस बील में समा गयी थी कुछ पता ही नहीं चल रहा था । विचारों के इसी उहापोह में शर्मा और उसके साथी सड़क के दोनों तरफ अन्दर की तरफ मुड़े रास्तों पर भी जहाँ तक नजर जाती ध्यान दे रहे थे ।
रामसहाय इस दौडभाग से खुश नहीं था । नागवारी भरे स्वर में दयाल से बोला ” साहब ! आप बेकार की भागदौड़ कर रहे हैं । मैंने उसका पूरा विवरण लिया है । अव्वल तो उसपर कोई मामला ही नहीं बनता है और अगर फिर भी उसकी जरुरत पड़े तो उसे कभी भी उठाया जा सकता है । ”
दयाल ने उसे खा जानेवाली निगाहों से देखा और जीप चलाते हुए ही सर्द स्वर में बोला ” तुम्हारी कारस्तानी से मैं अंजान नहीं हुं रामसहाय ! मुझे पता है तुम्हारी जेब में उस कमाल का दिया हुआ नोट फड़क रहा है । तुम्हारे ऊपर की गयी कोई भी कार्रवाई तुम्हारे परिजनों के लिए एक सजा होगी और मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे करतूतों की सजा तुम्हारे परिवार को मिले । फिर भी अब कि तुम्हें बख्शने के मूड में बिलकुल भी नहीं हूँ । तुम्हारी हरकतें अब बरदाश्त के बाहर हैं । ”
रामसहाय अपनी सफाई में कुछ कहना ही चाहता था कि दयाल ने उसे खामोश रहने का इशारा कर दिया । रामसहाय अब कुछ सहमा हुआ सा लग रहा था और अनमने मन से गाड़ी से बाहर की ओर देख रहा था कि अचानक ही वह बेतहाशा चीख पड़ा ” साहब ! गाड़ी रोकिये ! ”
अगले ही पल टायरों की तेज चिंघाड़ के साथ गाड़ी एक झटके से सड़क के एक किनारे रुक गयी । गाड़ी रुकते ही रामसहाय कुदकर बाहर आ गया और पीछे की तरफ एक छोटे से कच्चे रास्ते की तरफ दौड़ने लगा । दयाल सहित किसीको भी उसकी इस हरकत की वजह नहीं मालूम था फिर भी दयाल दौड़ते हुए रामसहाय की तरफ भागा जबकि शर्मा सहित दुसरे लोग तेज कदमों से उसकी तरफ चल दिए । सड़क से निकल कर बायीं तरफ एक कच्चा रास्ता किसी गाँव की तरफ जा रहा था और उसी रास्ते पर उन्हें वह टेम्पो खडा दिखाई दिया । मुख्य सड़क के दोनों किनारे उगी ऊँची झाड़ियों की वजह से वह टेम्पो सड़क से नहीं दिख रहा था । रामसहाय टेम्पो के पास जाकर रुक गया । टेम्पो का एक चक्कर लगा कर वह अपनी तरफ आ रहे दयाल को देखने लगा ।

टेम्पो के नजदीक पहुंचकर उसका  एक चक्कर लगाकर दयाल ने उसका चारों तरफ से  मुआयना किया । गाड़ी के पीछे और आगे के हिस्सों की भली भांति जांच करने के बाद दयाल की निगाहें कमाल और मुनीर की तलाश में वहीँ खड़े खड़े अपने चारों तरफ का मुआयना करने लगीं । अब तक शर्मा और उसके साथी सिपाही भी आ गए थे । आते ही शर्मा ने दयाल की तरफ सवालिया निगाहों से देखते हुए पूछा ” क्या यही गाड़ी थी ? इसके ड्राईवर और खलासी कहाँ हैं ? ”
दयाल ने उनकी तरफ देखे बिना ही जवाब दिया ” हाँ ! गाड़ी तो यही थी लेकिन लगता है बदमाश पकडे जाने के डर से गाड़ी यहीं छोड़कर फरार हो गए हैं । ”
दयाल अपने चारों तरफ का निरिक्षण करते हुए बोला ” अपराधियों ने हमसे बचने के लिए लगता है गाड़ी यहाँ छिपाकर खुद कहीं छिप गए हैं । हम उन्हें इसलिए पकड़ना चाहते थे ताकि वो अपने आकाओं को सूचित न कर सकें कि बच्चों ने उनकी पोल खोल दी है और वो सावधान हो जाएँ । अब एक ही रास्ता हमारे लिए बचा है तुरंत कार्रवाई करने का और वो ये है कि बच्चों की मदद से अपराधियों के अड्डे पर छापा मारा जाये इससे पहले कि कमाल उन्हें खबर कर दे । ” शर्मा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था फिर भी उसने सहमति में सीर हिलाया तभी उसके साथी सिपाही ने उसे याद दिलाया ” अरे साहब ! हम लोग कहाँ इनके चक्कर में पड़ने जा रहे हैं । ये इनका इलाका है और इन्हें जो अच्छा लगे करने दो । हम तो उन बच्चों की कस्टडी लेने आये हैं जिन्हें रामनगर पुलिस पकड़ने वाली है । ”
शर्माजी बोले ” कह तो तुम ठीक रहे हो लेकिन ये लोग भी अपने विभाग के ही है मतलब भाई जैसे हैं इनकी मदद करना हमारा फर्ज था इसीलिए हम इनके साथ चले आये । अब इन्हें आगे कोई कार्रवाई करनी है तो इन्हें अपने हिसाब से करने दो । हम लोग अपने रस्ते चले जायेंगे । ”
इनकी आपस की बातों पर कोई ध्यान दिए बिना दयाल टेम्पो के अगले हिस्से का निरिक्षण करने लगा । टेम्पो का चालक की तरफ का दरवाजा खुला हुआ ही था । दयाल ने अंदाजा लगाया  ‘ जल्दबाजी में कमाल ने शायद दरवाजा बंद नहीं किया होगा । हो सकता है दोनों यहीं कहीं आसपास ही छिपे हों और हमारे जाने के बाद वापस आकर गाड़ी लेकर फरार हो जाएँ । अब सबसे पहले मुझे यह गाड़ी अपने कब्जे में लेनी होगी । ‘ फिर कुछ सोचते हुए बोला ” ,हाँ ! यही ठीक रहेगा । ”
रामसहाय जो कि बिलकुल उसके पास ही खड़ा था उसकी बात सुनकर तुरंत ही बोल पड़ा ” क्या ठीक रहेगा साहब ? अब हमें क्या करना चाहिए ? ”
” तुम ये गाड़ी ढाबे तक ले चलने का इंतजाम करो । ” दयाल ने रामसहाय को आदेश दिया ।
” लेकिन साहब ! आप सिर्फ उन लड़कों के बयान के आधार पर बिना किसी सबूत के इनकी गाड़ी कैसे ले जा सकते हैं ? एक बार फिर से सोच लीजिये । अगर कहीं कोई चूक हो गयी तो फिर लेने के देने पड़ जायेंगे । ” रामसहाय ने अपनी आदत के मुताबिक दयाल को चेताया था ।
” तुम उसकी फ़िक्र न करो ! मैंने सब सोच लिया है । बच्चों के बयान को आधार न भी माना गया तो कम से कम निर्जन सुनसान जगह पर खड़ी लावारिस गाड़ी को पकड़ने का हमें अधिकार तो है ही । समझे ? ” दयाल ने उसे समझाया था ।
रामसहाय ने चालक सीट पर बैठ कर गाड़ी चालु करके देखा लेकिन इंजन चालु नहीं हुआ शायद उसकी चाबी नहीं लगी थी । उसने गाड़ी के गियर की डंडी हिलाकर उसके सही पोजीशन में होने की पुष्टि की और गाडी के नीचे झुककर उसने स्टार्टर के पास का एक वायर उसके दूसरे हिस्से से जैसे ही छुआया गाड़ी का इंजिन स्टार्ट हो गया ।
दयाल ने रामसहाय को  टेम्पो ढाबे पर ले चलने का निर्देश दिया और खुद भी जीप की तरफ बढ़ गया ।

 

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।