मुक्तक
फ़रेबी लोग ऐसे है, कि पल-भर में बदल जाते
जिगर जिनके बने पत्थर, भला कैसे पिघल जाते
महक पाई सुमन से तो, करों में भी चुभे कांटे
मिले कोई गुलिस्तां भी, बिना देखे निकल जाते ।
फ़रेबी लोग ऐसे है, कि पल-भर में बदल जाते
जिगर जिनके बने पत्थर, भला कैसे पिघल जाते
महक पाई सुमन से तो, करों में भी चुभे कांटे
मिले कोई गुलिस्तां भी, बिना देखे निकल जाते ।