मुक्तक/दोहा

“दोहा”

बुरा न मानों होली है…..रंग गुलाल रंगोली है…….

होली होली सब कहें, होली किसके साथ

हाथी चली न सायकल, रास न आया हाथ।।-1

कमल खिला बेपात का, चारो ओर विकास

केशरिया मन भा गया, चौथेपन सन्यास।।-2

जनता कबतक देखती, तेरा मेरा खेल

मान लिया धन एक है, नौ नौ गिनती फेल।।-3

सम्प्रदाय किसको कहें, किसको कहें समाज

सबकी रोटी सिक रही, अपने चुल्हा राज।।-4

जात पात नहीं पुछते, नाव छाँव अरु गाँव

एक साथ सब बैठते, घेरे ठण्ड अलाव।।-5

बाँट बाँट कर आँगना, ड्योढ़ी दर दिवार

कबतक छल तराएगा, डुबों अपने भार।।-6

आओ अब खेलन चलें, भर पिचकारी फाग

जीत हार तो हो गई, अब चौताली राग।।-7

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ