कहानी

नौकरी मिल जाएगी !

सोहन की मौत स्कूटर की कार से टक्कर हो जाने से हुई थी, मीनू की तो दुनिया लगता था खत्म हो गई । कार किसी शिक्षा विभाग के मंत्री की थी। जैसे ही मीनू को सोहन के गंभीर एक्सीडेंट की खबर मिली उसे अपने कानो पर यकिन नहीं हो रहा था, अभी तो सोहन खाना खाकर उससे कितनी बातें कर के गया था। ऐसा कैसे हो सकता है मीनू अपने आप को समझा रही थी कि अचानक सास की कड़क आवाज़ सुनाई दी कि पता नहीं कहां भेज रही थी इसी ने कान में कुछ फुसफुसाहट की और वो स्कूटर लेकर चला गया। यह तो है ही मनहूस। मीनू सास के ताने सुनती या अपने पति की खबर सुनकर उस घटनास्थल पर जाती। पर मीनू ने सास से बिना पूछे ही दहलीज लांगी थी। आज पहली बार ऐसा किया था पर सास पर तो किसी बात का असर ही नहीं था।

सोहन और विनय दो भाई थे पता नहीं सास की सोहन और मीनू से नहीं बनती थी जबकि सास का ध्यान यह दोनो ही अच्छे से रखते थे। सास को अफसोस ज़रुर हुआ यह खबर सुनकर, पर कुछ खास नहीं वो अब भी बड़बड़ा रही थी। बहुत बिगड़ गई थी मीनू जब देखो सोहन के साथ कहीं चली जाती कभी अपनी मर्जी करती मेरी सुनता कौन था बहुत अति उठाई थी दोनो ने अब थोड़ा शांत हो जाएगी। वहीं मीनू सोहन को ऐसी हालत में देखकर फूट फूट कर रोने लगी। अभी तो उनके दिन अच्छे आने लगे थे वो पैसे जोड़ जोड़ कर घर की चीज़े बनाने लगे थे। पर होनी को कौन टाल सकता है। बहुत भीड़ जमा हो गई थी घटनास्थल पर, मीनू को पर कोई हमदर्द नज़र नहीं आ रहा था। कोई कह रहा था चलो कोई तो इसे उठाकर ले चलो पर वो तो खत्म हो चुका था मौत तो वहीं हो गई थी बस कुछ आखिरी सांसे रह गई थी अस्पताल जाने कोई फायदा नहीं था ।सभी कह रहे थे टक्कर जिस कार से हुई है मंत्री की थी नौकरी मिल सकती है, पक्का घर के किसी सदस्य को। मीनू की तो दुनिया ही खत्म हो गई थी, वो भग्वान से बार बार पूछ रही थी ऐसा क्यों कियो एक तो ससुराल में किसी का सहयोग नहीं ऊपर से दो बच्चों की ज़िम्मेदारी अब वो अकेली रह गई यह सब कैसे करेगी, मायके में भी पापा नहीं थे भाई खुद ही परेशान थे उनकी आर्थिक स्थिती अच्छी नहीं थी वो मीनू को क्या सहारा देते। सोहन के तेरह दिन ही हुए थे सास अपने पुराने रुप में आ गई थी मीनू सोहन की दुकान अब विनय संभालेगा तुम घर का काम करो, वैसे भी सोहन ने तुम्हे बहुत बिगाड़ कर रखा था, विनय अच्छा नहीं था उसका काम चलता नहीं था पत्नी भी उसके और सास के गल्त स्वभाव की वजह से छोड़ कर जा चुकी थी। मीनू ने और सोहन ने ही घर संभाला था। विनय के मन में लालच आ गया कि बैठे बिठाए चलता काम मिल गया मीनू क्या कर लेगी। वहीं मीनू को सबने समझाया कि दुकान तुम्हारा सहारा है विनय को मत देना तुम्हारे बच्चों के काम आएगी फिर किसके आगे हाथ फैलाओगी। मीनू की नौकरी के लिए भी कौशिश की जाने लगी पर दफ्तरों के चक्कर लगाते लगाते महीनो बीत गए, कभी कोई कागज़ कम होता था कभी कोई, मीनू पढ़ी लिखी थी उसका मन भी नौकरी करने का था। दुकान भी स्पेयर पार्टस की थी जो उसके बस का रोग नहीं थी न ही कोई समझ थी। पर मीनू की नौकरी लग जाती तो घर और बच्चों का ख्याल रख सकती थी और दुकान पर लड़के बैठते थे वहां जाकर हिसाब किताब कर सकती थी और बच्चों की परवरिश अच्छे से कर सकती थी। पर नौकरी इतनी आसानी से नहीं मिल पा रही थी। शुरु शुरु में सब कह रहे थे नौकरी मिल जाएगी फिक्र मत करो फिर सारे अपने अपने रास्ते निकल गए थे,पर जब नौकरी दिलाने की बारी आई तो कहीं नहीं थी। बहुत कौशिश की दफ्तरों के कितने चक्कर लगाए एक अंकल थे, रिशतेदार थे मीनू के वो बहुत कौशिश कर रहे थे पर इमानदारी से और सीधे रास्ते से काम शायद आसान नहीं होता। उन्होने कौशिश नहीं छोड़ी वहीं मीनू की सास कहती थी नौकरी कर के क्या करेगी हम पर रौब डालेगी, घर पर ही बैठ वो तो बस मीनू को दबाकर रखना चाहती थी। पर मीनू जानती थी कि पति को तो वो खो चुकी है अब बच्चो के भविष्य के साथ कोई समझौता नहीं करेगी, उसके लिए उसे चाहे कितनी कौशिश करनी पड़े पर मीनू और अंकल की कौशिश काम नहीं आई और बहाने बनाकर उनकी फाइल को नीचे कर दिया गया, बस यही कहा जाता कि नौकरी मिल जाएगी। मीनू समझ गई थी कि नौकरी नहीं मिलेगी उसने लोगो की परवाह किए बिना दुकान पर बैठ कर काम सीख लिया और शाम को ट्यूशनस शुरु कर ली , और बच्चों की परवरिश करने लगी ,सास के तानों और विनय की धमकियों से वो नहीं डरी और अपना काम करती रही। नौकरी तो नहीं मिली पर अपनी ज़िन्दगी के जीने के लिए राह ढूंढ ली थी।

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |