ग़ज़ल
पाक माना धूर्त है, चालाकी’ दिखलायेंगे’ क्या
देश के गद्दारों’ को, फिर पाक उकसायेंगे’ क्या ?
जान न्यौछावर की’ सैनिक देश रक्षा के लिए
ये सहादत से सियासत नेता’ चमकाएंगे’ क्या ?
चाहते थे वे कहे कुछ मोहनी बात और भी
जुमले’ बाजी से नहीं फुर्सत तो बतलायेंगे’ क्या ?
खुद की’ नाकामी छुपाने के लिए कुछ बोलते
भड़की’ है जनता अभी तलक और भड्कायेंगे’ क्या ?
सीमा’ से आतंक वादी चोर ज्यों अन्दर घुसे
तार काँटे तेज हद पर और लगवाएंगे’ क्या ?
आयुधों का डर दिखाकर कब तलक सुरक्षित रकीब
हम खड़े हैं युद्ध स्थल पर मस्त, घबराएंगे’ क्या ?
किस नदी के जल से अभिषेक आदि होगा पूजा में
गंगा’ तो अब मैली’ है, शंकर को’ नहलायेंगे’ क्या ?
युद्ध के रफ़्तार से गंगा करेंगे साफ़ अब
काम यदि अटका तो’ गंगा में वो’ डुब जायेंगे’ क्या ?
मुफलिसी में तुम ने’ काटे वक्त फाँके मार कर
हम अगर अब रह गए यां साहिबा खायेंगे’ क्या ?
बे-नियाज़ी आपकी ज़ाहिर किया दिल का मुराद
जख्म जो गहरा दिया, अधिक और फरमाएंगे’ क्या ?
जोश में उसने तुम्हे घर में बुलाया तो है’ पर
आचरण से वह बहुत कंजूस है, खिलवाएंगे’ क्या ?
कालीपद ‘प्रसाद’