तमन्ना
मन की बेचैनियां किसके साथ साझा करूँ
आओ मेरे दिल तुमसे ही कुछ वादा करूँ ।
कौन है जो धीरज देता इस भरी महफ़िल में
कुछ अनकही बातें किसके साथ बांटा करूँ।
अजनबी से जहां को समझना बस का नहीं
दरिया प्रेम का भरकर खुद को निहारा करूँ।
उल्फत का जमाना कहाँ से लाऊं नसीब में
जुल्फों से खेलकर मंजिल का सहारा बनूँ ।
शबे गम थम न जाये कहीं बस्तियों की तरह
गरीबी को दिलों की आंखों से सजदा करूँ।
मायूस क्यों है ऐ दिल जमाने की बेबफाई से
चलो खुशियां भरे जज्बात को लुटाया करूँ ।
दिलों के तार अक्सर टूट जाते हैं तन्हाई में
सिलसिला प्यार का फिर से चलाया करूँ!
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़