ओस की बूँदें
सुबह की सोंधी सोंधी खुशबू हवा की
ओस की बूंदों में नहाई घास पर
चलते मेरे कदम लगता है
इससे प्रिय मुझे कुछ भी नहीं
जो एहसास है हर रोज
एक सुबह का
सूर्य की तेज तपती किरणों से पहले
अपने यौवन में होती है वो बूंद ओस की
कदमों को जैसे ही छूती है वो
त्वचा तक ही नहीं पहुंचती !
त्वचा से लेकर मन तक की
दूरी भी तय कर लेती है वो
ओस की बूंद
कई दफा तो कोशिश करता हूं
हथेलियों पर रखने की
सुनहरी ,ठंडी ,मन को हर्षाने वाली
वो ओस की बूंद कितनी अच्छी होती है
बयान नहीं कर सकता
यह सोंधी सोंधी खुशबू हर रोज
सुबह उठा देती है मुझे
एक प्रेमी की तरह जो
मिलने को लालायित है अपनी
प्रेमिका ओस की बूंद से