गज़ल
एक-एक कतरे में तुम एक समंदर रखना
अश्कों को लेकिन अपने कहीं अंदर रखना
खुशियाँ बाँट देना सारी अपने यारों में
दौलत-ए-दर्द मगर तुम संभालकर रखना
फूल-सा होगा तो हर रोज़ तोड़ा जाएगा
खुश रहना है तो दिल अपना तुम पत्थर रखना
ठहर जाना मौत का ही नाम है दूजा
ज़िंदगी भर जारी अपना तुम सफर रखना
लहज़े में खुद-ब-खुद कड़वाहटें घुल जाती हैं
इतना आसां नहीं सच को ज़ुबान पर रखना
— भरत मल्होत्रा