“अपने मन की”
शुरू करो कुछ अपने मन की
कब तक करोगे सबके मन की,
लोगों को खुश करना छोड़ो
कब तक सुनोगे बेसर पर की,
अपनी खिचड़ी पका रहे सब
कब तक भरोगे मटकी जल की,
उठो लड़ो नकली चेहरों से
धार बहे कब तक असुंवन की,
भय की रस्सी जला भी डालो
हिम्मत दिखा डालो अब मन की,
आगे ही आगे बढ़ते जाओ
छोड़ो चिंता तुम अब कल की,
पल-पल खुश तुम रहना सीखो
खबर रखो अपने हर पल की