पुरवैया
जब दरख्तों से अठखेलियां
करती है पुरवैया
काले घनघोर बादलों के सीने में
चमकती है बिजुरिया
पिया तुम याद आते हो
बहुत जी को तड़पाते हो
— सुनीता कत्याल
जब दरख्तों से अठखेलियां
करती है पुरवैया
काले घनघोर बादलों के सीने में
चमकती है बिजुरिया
पिया तुम याद आते हो
बहुत जी को तड़पाते हो
— सुनीता कत्याल