कविता

लौह रूपिणी

सोमवार को लांस नायक संदीप सिंह कश्मीर में मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए।
उसने तीन आतंकवादियों को मार गिराया। उनके 5 साल के बेटे ने पार्थिव शरीर को
सेल्यूट किया। उनकी मां कुलविंदर कौर ने बेटे के पार्थिव शरीर को कंधा दिया।
मेरी रचना समस्त जवानों को, मां एवं देशवासियों को समर्पित है……..एवं श्रृद्धांजलि…….!!

” लौह रुपिणी ”

भेजकर सेना में बेटे को
मां का हृदय था गर्वित,
देश के नाम अपना सपूत
कर दिया उसने अर्पित।

कहती सबको गर्व से
खुशी के आंसू भर आंखों में,
देश प्रेम की भावना झलकती
उसकी प्रत्येक बातों में।

जन्म दिया मैंने बेटे को
देश पर मर मिटने के लिए,
वो मां किस काम की है
जो केबल जिए अपने लिए।

देश सुरक्षित है तो हम हैं
हमारी नहीं है कोई हस्ती,
सेना ना करे सुरक्षा देश का तो
रहेगी ना कोई शहर, कोई बस्ती।

दी शिक्षा मां ने बेटे को
देश पर तुम मर मिटना,
खाना गोली सीने पर,फिर
भी पीछे कभी ना हटना।

तुम भारत के हो वीर सपूत
दुश्मनों को बतला देना,
एक को मारे वह तो तुम
दस दस को मार गिराना।

पार्थिव शरीर जब आया था
तिरंगे में लिपटकर आंगन में,
ना चेहरे पर शिकन थी मां की
ना आंसू थे उसके नैनों में।

पांच साल के बेटे ने, पिता के
पार्थिव शरीर को किया सैलूट,
इस दर्दनाक दृश्य को देख
गांव वाले दुख से गए थे टूट।

मा ने दिया कंधा बेटे को
आश्चर्यचकित सब देखते रहे,
लौह रुपिणी,शक्ति रूपिणी मां के
दोनों नैन गर्व से चमकते रहे।

दिया उसने दुश्मनों को
निशब्द होकर चेतावनी,
कमजोर नहीं है मांओं के कंधे
सुन लो तुम नीच, अभिमानी।

मिटा देंगे तुम्हारी हस्ती
हम में हैं इतनी शक्ति,
हम पर बुरी नजर डालने वालों
प्रत्येक हृदय में है देश भक्ति।

ऐसे वीर सपूतों के, धीर मांओं को
हृदय से मेरा शत शत नमन,
इनके दम से ही सुरक्षित है
भारत भूमि की शांति- अमन।

एक सीख दे गए युवा पीढ़ी को
अडिग रहो अपना सीना तान,
कट जाए शीष देश के नाम
पर झुके ना हमारी आन व शान।

अंकित रहेगी हृदय में सबके
उनकी यह वीरता भरी गाथा,
इतिहास भी करेगा नमन सदा
झुका कर सम्मान में अपना माथा।

पूरणतः स्वरचित- ज्योत्सना पाॅल ।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]