महानता
” महानता ”
सागर कहे बूंद से
बहुत छोटी सी है तू
तुझसे नहीं मेरा कोई काम,
है विशाल आकार मेरा
अथाह है मेरी गहराई
जग में बड़ा है मेरा नाम।
कहे बूंद विशाल सागर से
सच्चाई है तुम्हारी बातों में
तुम्हारी विशालता को प्रणाम,
सोच कर देखो एक बार
गिरे ना बूंद तुम्हारे ह्रदय में
तो जग में रहेगा न तुम्हारा नाम।
मेघ कहे सिंधु से,प्यासे का
प्यास ना बुझा सके तू
जग में तेरा जन्म है विफल,
समाएगा मेरे हृदय में जब
गिरकर बूंदों के रूप में
तू भी ना हो पाएगा सफल।
मानव कहे धूल से
रहती सदा पग तले
अर्थहीन है तेरा जनम,
जिस तन पर है अहंकार
एकाकार होगा मुझ में एक दिन
कहां धूल ने मानव को करके प्रणाम।
‘महानता’इसी में है
भेद करे ना छोटे बड़े का
करें ना अपने मुख से अपनी बखान,
कर्म जो मिला विधाता से
निर्वाह करें उसे तन मन से
वही ज्ञानी, जग में वहीं महान।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल