कविता

परिवर्तन

बदलते समय के साथ साथ
बदले विचार, बदले परिधान,
वेशभूषा ही बताए व्यक्ति का
व्यक्तित्व की सही पहचान।

सतयुग से लेकर कलयुग तक
बदले हजारों बार परिधान
परिधानों से ही होता आया है
प्रत्येक युग की सही पहचान।

कलि युग में भी समय-समय पर
बदलते रहे परिधानों के स्वरूप,
चाहे कुटिया हो या कोई इमारत
कोई प्रजा या फिर हो कोई नृप।

समय का चक्र रुकता नहीं कभी
परिवर्तन है प्रकृति का नियम,
परिवर्तन कितना उचित,अनुचित
निर्धारित करता है मानव स्वयम।

परिवर्तित हुआ भाषा का स्वरूप
जीवन मूल्य और समयानुसार,
स्वीकार कर लिया समाज ने
उसे भी अपनी आवश्यकतानुसार।

केवल परिधान नहीं होता है
आधुनिक होने का परिचायक,
दृष्टि कटु जब ना हो वेश-भूषा
वही होता है उचित फलदायक।

आधुनिक कहलाने के योग्य
विचारों से ही होते हैं मानव,
जिन के विचार पवित्र नहीं होते
वे तो कहलाते हैं जग में दानव।

जग में वही महान कहलाए
विचारों की थी जिनमें शुद्धता,
आंखों में थी औरों के लिए
सदैव सम्मान और प्रतिबद्धता।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]