लघुकथा

“आधे में अधूरा-पहला प्यार”

एक लंबे अर्से के बाद उषा और निशा का मिलन हुआ… नदियों का आपस में मिलना आसान है , लेकिन अलग-अलग शहरों में ब्याही एक गाँव की बेटियों का मिलना कहाँ हो पाता है.… अपने मायके से बुलावे और ससुराल से भेजे जाने के बीच तारतम्य बैठाने में समय गुजरता जाता है… मिलते ही उषा निशा के हाल-चाल पूछने के क्रम में वैवाहिक जीवन कैसा चल रहा है ? जानने की जिज्ञासा प्रकट करती है. निशा बताती है कि उसका वैवाहिक जीवन बेहद सुकून भरा है… पति , सास-ससुर सभी बेहद प्यार और सम्मान देते हैं
“और भानु”
“दिल में खुदा नाम कहाँ मिटता है!”
“अपने पति को कभी बताया?”
“मीरा की तरह जहर का प्याला पीने की साहस नहीं जुटा पाई!”
“भानु की तुलना कृष्ण से?”
“ना! ना! तुलना नहीं। ईश और मनु में क्या और कैसा तुलना!”
निशा जब से होश संभाली थी तब से ही अपनी माँ की बातों से उसे पता चला था कि उसकी शादी , मामी के भतीजे भानु से होगी और वह भानु नाम अपने दिल दिमाग में बैठा ली थी और भानु की प्रतीक्षा करने लगी थी लेकिन भानु और निशा का मिलना कब हुआ है…

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on ““आधे में अधूरा-पहला प्यार”

  • कल्पना भट्ट

    बढ़िया रचना

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      सस्नेहाशीष संग शुक्रिया

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