गीतिका/ग़ज़ल

मैं भी एक इंसान हूं

मैं भी इंसान हूं इक हसीं स्वपन देखना चाहता हूं,
सरेराह बुर्के में भी तन नगन देखता चाहता हूं।

मैं इटली का मुझे क्या मतलब भारतीय संस्कृति से,
मंदिर – मस्जिद में छेड़ता सज्जन देखना चाहता हूं।

अकेला नहीं मैं हवस का पुजारी इस जहान में,
कलियों में भी गदराया यौवन देखना चाहता हूं।

संस्कारी भारत में अब गिरने लगे है ऐसे लोग,
कि मैय्यत पर सुंदर कफ़न देखना चाहता हूं।

भरी है ऐसी गंदगी लोगों में सिनेमा के सेलिब्रिटियों ने,
गर्लफ्रेंड हो लिओनी लिओनी में बहन देखना चाहता हूं।

खुद के घर में तो करता नहीं कभी कोई भक्ति पर,
पड़ोसी के घर में नित होता भजन देखना चाहता हूं।

मैं कैसा हूं ये तो मुझे भी अब तलक ना समझ आया,
खूद की छोड़ दूसरो का चाल चलन देखना चाहता हूं।

ये हवसी कहलाना मुझे भी पसंद नहीं पर हूं मजबूर,
पर अपनी संस्कृति का प्राचीन चलन देखना चाहता हूं।

तुम्हें घुमने, पहने, की आज़ादी बिल्कुल होनी चाहिए,
आम कराओं ना नुमाइश वो बदन देखना चाहता हूं।

— संजय सिंह राजपूत
बागी बलिया उत्तर प्रदेश

संजय सिंह राजपूत

ग्राम : दादर, थाना : सिकंदरपुर जिला : बलिया, उत्तर प्रदेश संपर्क: 8125313307, 8919231773 Email- [email protected]