कविता

चैनो अमन की तमन्ना

मैं क्या हूँ, कहां हूँ
मेरी बात न पूछिए
एक अदद इंसां हूँ ज़मीं पर
मेरी जात न पूछिए ।

मुहब्बत का मारा इक बदनसीब
कैसे हुआ बर्बाद न पूछिए
ग़ैरों से क्या शिकवा करूँ
कैसे लूटा अपनों ने न पूछिए ।

उठा जहाँ नफ़रत का धुआं
क्यों बुझाने गए आग न पूछिए
चैनो अमन की थी तमन्ना
दिल ही क्यों जला बैठे न पूछिए ।

गिरी लाश जब इंसानियत की
क्यों रोएं बैठकर न पूछिए
शायद दो आंसू काम आ जाए
क्यों आस लगा बैठे न पूछिए ।

दहशत का मंज़र है हर तरफ
ज़ख्मे जिगर का हाल न पूछिए
सरे बाज़ार नीलाम हुआ सुकूं
क्यों नहीं उनको मलाल न पूछिए ।

हवाओं में घुल गया ज़हर
किसकी है ये हरक़त न पूछिए
कितनी शिद्दत से करते हैं वो
अपनों से नफ़रत न पूछिए ।

जाने कब जागेगा बदगुमां-ए-दिल
कब तक और इंतजार न पूछिए
इक रौशनी की तलाश मुझे है
दुआ कबूल अब तो कीजिए ।

           ज्योत्स्ना की कलम से

मौलिक रचना

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]