सरहद के सपूत
हद से बढ़कर सरहद से प्यार है
माँ की ममता सा दुलार है।
कभी माँ का लाडला हुआ करता था
अब तो बस माँ भारती से ही प्यार है।
दंभ हमें छू ना पाये दुश्मन की क्या औकात है?
मैं हूँ फौजी नहीं बन सकता मनमौजी
सारी दुनिया जब सो जाती है
मेरी आँखें दुश्मन की तलाश में लग जाती है।
ठिठुरते ठंढ़ में पसीने बहाते हैं।
दुश्मनों को नाकों चने चबाने को मजबूर
हम कर जाते हैं ।
होली दीपावली या जन्मदिन
सरहद पर ही मनाते हैं।
बीमार बुढ़े माता-पिता की होती है चिंता
पर वतन के वास्ते मजबूर हो दुआएँ
भेजकर ही शुकून हम पाते हैं।
खानाबदोश सी है हमारी जिंदगी
गर्म रजाई या बिस्तर हमें नशीब कहाँ?
बंकरों में चैन की नींद पाते हैं।
सात वचन और सात फेरे लेकर भी
अपनी अर्धांगिनी के संग चिट्ठियों
पर ही अपना पन और प्यार लूटाते हैं।
हम हैं फ़ौजी वतन के वास्ते जान न्योछावर
तिरंगे में लिपट कर वंदेमातरम गीत गाते हैं।
— आरती राय. दरभंगा
बिहार.