लेखन ऑन सेल
मेरी हृदय-कोशिकाएं भी झूल लेती हैं झूला
एक ही साथ – एक ही प्रवाह में।
जब कोई ऐसा लिखा पढ़ती हैं आँखें
जो दिल के हर सेल को कर लेता है पर्चेज।
लेकिन सेल्स का थमना तब होता है अनुभव
जब कोई सृजनकर्ता जगह-जगह कहता फिरता है,
मेरा लिखा पढ़ लो… मेरा छ्पा पढ़ लो…
क्यों साहब! क्या लेखन ऑन सेल है?