सुनहले, रंगीले, सजीले ,छबीले !
मधुर भाव मनके , भावना से गीले !
सुधि सुगन्ध सुरभित हुई मन गलियां ।
रंग सराबोर स्वप्न सहज ही परतीले।
ले धड़कन गुलाल खड़ी देहरी द्वार
शोख़ गुलाबी गाल हुए फिर लजीले ।
है उमंग अंग -अंग मिल रहे रति अनंग
मीत ,प्रीत गीत में रंग भरे चटकीले ।
टेसू दहके देह ऋतुराज उतरे गेह
कोयल कूक मादक स्वर हुये हैं सुरीले ।
चढ़ गया प्रेम रंग रोम रोम में सुगन्ध ।
साथ है साजन का महुआ नैन नशीले ।
— रागिनी शर्मा ‘स्वर्णकार’