गज़ल
किसी को लबों की ललाई ने लूटा,
हमें शायरों की रुबाई ने लूटा।
यकीनन बहुत मर्तबा लुट चुके हम,
अभी एक दिल की रुलाई ने लूटा।
शिकायत नहीं है हमें कंटकों से,
सदा फूल की आशनाई ने लूटा।
कहाँ दम किसी गैर की बाजु़ओं में,
लगाकर नक़ब ख़ास भाई ने लूटा।
किए रौशनी रात में दीप देकर,
सुबह उनके दीया- सलाई ने लूटा।
गई थी हवा संग चलने को कहकर,
अवध को उसी की भलाई ने लूटा।
— डॉ अवधेश कुमार अवध